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गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

आवारा सजदे

इक यही सोज़-ए-निहाँ कुल मेरा सरमाया है
दोस्तो मैं किसे ये सोज़-ए-निहाँ नज़र करूँ
कोई क़ातिल सर-ए-मक़्तल नज़र आता ही नहीं
किस को दिल नज़र करूँ और किसे जाँ नज़र करूँ?
तुम भी महबूब मेरे तुम भी हो दिलदार मेरे
आशना मुझ से मगर तुम भी नहीं तुम भी नहीं
ख़त्म है तुम पे मसीहानफ़सी चारागरी
मेहरम-ए-दर्द-ए-जिगर तुम भी नहीं तुम भी नहीं
अपनी लाश आप उठाना कोई आसान नहीं
दस्त-ओ-बाज़ू मेरे नाकारा हुए जाते हैं
जिन से हर दौर में चमकी है तुम्हारी दहलीज़
आज सजदे वही आवारा हुए जाते हैँ
दूर मंज़िल थी मगर ऐसी भी कुछ दूर न थी
लेके फिरती रही रास्ते ही में वहशत मुझ को
एक ज़ख़्म ऐसा न खाया के बहार आ जाती
दार तक लेके गया शौक़-ए-शहादत मुझ को
राह में टूट गये पाँव तो मालूम हुआ
जुज़ मेरे और मेरा रहनुमा कोई नहीं
एक के बाद ख़ुदा एक चला आता था
कह दिया अक़्ल ने तंग आके ख़ुदा कोई नहीं
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राहुल सांकृत्यायन की दुर्लभ पांडुलिपियों की चोरी - प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा उच्च स्तरीय जांच की मांग

महापंडित राहुल सांकृत्यायन की दुर्लभ पाण्डुलिपियों, पुस्तकों और उनके द्वारा संकलित पुरातात्विक अवशेष चोरी चले गये हैं। यह सनसनीखेज घटना आजमगढ़ के हरिऔध कला भवन में हुई है जहां राहुल जी और अन्य साहित्यकारों की दुर्लभ पुस्तकें एवं पाण्डुलिपियां रखी हुई थीं। इस बाबत सूचना देते हुए प्रगतिशील लेखक संघ के प्रान्तीय महासचिव डा. संजय श्रीवास्तव ने कहा कि इस प्रकरण को प्रशासनिक स्तर पर दबाने का प्रयास किया जा रहा है। डा. श्रीवास्तव के अनुसार जिलाधिकारी ही हरिऔध कला भवन का अध्यक्ष है बावजूद इसके घटना की प्राथमिकी तक दर्ज नहीं कराई गयी है। नगर के साहित्यकार एंव बुद्धिजीवी इस घटना से स्तब्ध हैं और रंगकर्मियों का एक समूह धरने पर बैठा हुआ है।आजमगढ़ से लौट कर इस घटना का विवरण देते हुए डा. श्रीवास्तव ने बताया कि कला भवन में जहां राहुल जी की पाण्डुलिपियां, पुस्तकें एवं पुरातात्विक महत्व की मूर्तियां रखी हुई थीं, उस कमरे में कोई ताला नहीं था और लावारिस पड़े बक्सों और चीथड़े हो गये गट्ठरों की हालत बताती है कि यहां कोई देखरेख नहीं की जाती थी। कमरे का वातावरण तो सहमा देने वाला है। एक डरावना दृश्य देखने को मिला। कमरे में बड़ी-बड़ी अस्थियाँ बिखरी पड़ी थीं। ये अस्थिपिंजर और बिखरे टुकड़े बिलकुल सूखे पड़े थे मानो कई वर्षों से वहां कोई आया ही न हो। यह भवन जर्जर हो चुका है और वैसे भी वहां लोग कम से कम आते-जाते हैं। लेकिन इन कमरों तक तो किसी की आवाजाही नहीं रही है। फिर ये अस्थियाँ किसकी हैं और यहां कैसे आईं, यह चौकाने वाला प्रसंग हो सकता है। धरने पर बैठे लोगों से मिलने आए एक पुलिस अधिकारी ने ही कहा कि यह बंदरों की अस्थियाँ हैं और बक्से व गट्ठर इन बंदरों ने ही तोड़े हैं। धरने पर बैठे साथियों से सुनकर मैं हतप्रभ रह गया। एक पुलिस अधिकारी बिना जांच पड़ताल के इस तरह क्यों बोल रहा है जबकि इन दिनों आपराधिक घटनाओं का दौर तेज है। बहरहाल अंतर्राष्ट्रीय महत्व की वस्तुओं के चोरी चले जाने का गम जिलाधिकारी और दूसरे हुक्मरानों को नहीं है। आजमगढ़ मण्डल मुख्यालय है, यहां कमिश्नर और डीआईजी स्तर के अधिकारी बैठते हैं। हरऔध कला भवन के अध्यक्ष जिलाधिकारी है, तब इस संस्थान का यह हाल हुआ है। घटना के दूसरे दिन आज तक जिलाधिकारी मौके पर नहीं गये लेकिन पूरे प्रकरण को लेकर साहित्यकार, रंगकर्मी और बुद्धिजीवी अपने नागरिक दायित्व का बोध करते हुए धरने पर बैठे हैं। मौके पर प्रसिद्ध विचारक और ‘कारवां’ के सम्पादक डा. रवीन्द्र राय, हरमंदिर पाण्डेय, रंगकर्मी राघवेन्द्र पाण्डेय, अभिषेक पंडित सहित अनेक साथी मिले। कमरे को अभी भी सीलबन्द नहीं किया गया है और न ही मौके पर पुलिस ही मौजूद रही। इस तरह राहुल जी की धरोहर को लेकर यह प्रशासनिक बदहवासी और उपेक्षा समाज और संस्कृति के लिए बड़ा आघात है।इस पूरे प्रकरण की सनसनी बनारस में भी फैल चुकी है। प्रसिद्ध कथाकार काशी नाथ सिंह, वरिष्ठ आलोचक प्रो. चौथी राम यादव, मूल चन्द्र सोनकर, जवाहर लाल कौल ‘व्यग्र’, डा. संजय कुमार, प्रो. राज कुमार, डा. श्री प्रकाश शुक्ल, डा. आशीष त्रिपाठी, शिव कुमार पराग, अलकबीर, डा. गोरख नाथ, डा. संगीता श्रीवास्तव, शशि कुमार सिंह, अशोक आनन्द आदि के साथ प्रगतिशील लेखक संघ ने इस तरह की प्रशासनिक लापरवाही पर दुख व्यक्त करते हुए सरकार से मांग की है कि तत्काल प्राथमिकी दर्ज कर पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच कराई जाये और दोषियों को अविलम्ब दण्डित किया जाये। यह निर्णय लिया गया कि शीघ्र ही यदि प्रशासनिक हस्तक्षेप नहीं हुआ तो धरने पर बैठे लोगों के समर्थन में प्रगतिशील लेखक संघ भी सम्मिलित होगा।
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