भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

About The Author

Communist Party of India, U.P. State Council

Get The Latest News

Sign up to receive latest news

फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

भारतीय रिजर्व बैंक में महंगाई से निपटने की इच्छा शक्ति नहीं

मुम्बई में 20 अप्रैल को भारतीय रिजर्व बैंक ने वार्षिक मौद्रिक नीति की घोषणा करते हुए ऐसे कोई कदम नहीं उठाये जिससे यह साबित होता कि भारतीय रिजर्व बैंक में महंगाई से निपटने की इच्छा शक्ति है। वार्षिक मौद्रिक नीति की घोषणा के पहले स्टॉक मार्केट गिर रहा था और समाचार माध्यम एवं पूंजीपति वर्ग की संस्थाएं चीख रहीं थीं कि ऋणों पर ब्याज दरें बढ़ जायेंगी और उससे आर्थिक तबाही आ जायेगी। नीति घोषित होते ही शेयर बाजार कुलांचे भरने लगा। यह इंगित करता है कि वांछित सख्ती नहीं की गयी है।भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंक दर एवं वैधानिक तरलता अनुपात (एसएलआर) को यथावत बनाये रखते हुए नगदी आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में केवल 0.25 प्रतिशत की बढ़ोतरी की जबकि रेपो एवं रिवर्स रेपो दरों में भी केवल 0.25 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गयी है। सीआरआर में बढ़ोतरी से बैंकों के पास ऋण देने हेतु उपलब्ध संसाधनों में केवल 12,500 करोड़ रूपये की कमी आयेगी और बैंकों के पास ऋण देने के लिए रकम इससे कहीं कई गुना अभी भी उपलब्ध रहेगी। रेपो एवं रिवर्स रेपो दरों में बढ़ोतरी का बाजार पर कोई विशेष असर नहीं पड़ेगा।इस प्रकार भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उठाये गये कदमों से मंहगाई पर कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है।इस समय जरूरत थी कि भारतीय रिजर्व बैंक सीआरआर और एसएलआर में तीव्र वृद्धि कर बैंकों के पास ऋण हेतु उपलब्ध संसाधनों को बैंकिंग सिस्टम से खींच कर बैंकों के पास तरलता को पर्याप्त कम करता और बैंक दर एवं रेपो-रिवर्स रेपो दरों को भी तेजी से ऊपर लाकर बैंकों का जमाराशियों पर देय ब्याज दर को बढ़ाने का संकेत देता और परिचालन में मुद्रा (मनी इन सर्कुलेशन) को कम करता। परन्तु ऐसा नहीं किया गया है।इस समय महंगाई में विशेष योगदान खाद्य पदार्थों में आई महंगाई का है। भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने बयान में यह स्वीकार किया है कि खाद्य पदार्थों की महंगाई दर मार्च 2010 तक 53.3 प्रतिशत थी। बात दीगर है कि यह सरकारी आंकड़ा है और कीमतों में इससे कहीं ज्यादा बढ़ोतरी आम आदमी को भुगतनी पड़ रही है। जिन्सों की कीमतें दो से चार गुना तक बढ़ गयी हैं। जिन्सों का उत्पादन किसान करते हैं परन्तु किसानों को जिन्सों का अभी भी वही मूल्य मिल रहा है जो उन्हें एक-दो साल पहले मिल रहा था। इसके स्पष्ट दो कारण है। पहला खाद्य पदार्थों की सट्टाबाजारी एवं जमाखोरी। इन पर अंकुश लगाने की जरूरत थी। इसके लिए जरूरी था कि खाद्य पदार्थो में सट्टेबाजारी के लिए उपलब्ध धन श्रोतों (जोकि अंततः राष्ट्रीयकृत बैंकों से ऋण एवं सरमायेदारों द्वारा अंधाधुंध मुनाफाखोरी के जरिए उपलब्ध हो रहा है) पर लगाम लगाई जाती। साथ ही खाद्य पदार्थों के लिए दिये जाने वाले गैर-कृषि ऋणों पर लगाम लगाने की भी सख्त जरूरत थी यानी सेलेक्टिव क्रेडिट कंट्रोल उपायों को अमल में लाना चाहिये था। परन्तु इस प्रकार के किसी सख्त कदम की घोषणा नहीं की गयी है।इधर कई सालों से बैंकिंग बिलकुल बदल गयी है। एटीएम और क्रेडिट कार्ड एक तरह से परिचालन में मुद्रा की मात्रा को बढ़ा रहे हैं। आरटीजीएस जैसी मैकेनिज्म से पैसा देश के एक कोने से दूसरे कोने में इतनी तेजी से यात्रा कर रहा है कि बाजार में मुद्रा की उतनी जरूरत ही नहीं है जितनी दस सालं पहले तक होती थी। पहले एक व्यवसायी को दूसरे शहर के व्यवसायी को पैसा भेजने में एक सप्ताह लग जाता था जबकि आज इस पैसे को दिन भर में 5 बार फेंटा जा सकता है यानी यह पैसा एक ही दिन में 6 लोगों के खातों में जमा होकर निकल जाता है।देश के अर्थतंत्र में अंधाधुंध काला धन उपलब्ध है, जो देश में समानान्तर अर्थव्यवस्था चला रहा है। यह काला धन भी अंततः सट्टेबाजी और मुनाफाखोरी में लग रहा है। इस प्रकार किसी अधिकारिक आंकड़े के आधार पर भारतीय रिजर्व बैंक कदम नहीं उठा सकता बल्कि उसे परिस्थितियों की गंभीरता को देखते हुए सख्त कदम उठाने चाहिये थे।वार्षिक मौद्रिक नीति घोषित करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डी. सुब्बाराव ने स्वीकार किया कि 2009-10 में केन्द्र सरकार के रू. 2,98,411 करोड़ रूपये के वित्तीय घाटे को पूरा करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक को 2,51,000 करोड़ रूपये बाजार से उठाने के लिए नई प्रतिभूतियां जारी करनी पड़ी और वर्तमान वित्तीय वर्ष 2010-11 के वित्तीय घाटे को पूरा करने के लिए बाजार में 3,42,300 करोड़ की प्रतिभूतियों को जारी करना होगा। सरकार काले धन को जब्त कर और सरमायेदारों के बढ़ते मुनाफों पर कर लगा कर इस वित्तीय घाटे को पूरा करने के बजाय बाजार से उधारी पर निर्भर है और इसका भी असर मुद्रास्फीति पर पड़ना लाजिमी है।भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर की यह स्वीकारोक्ति कि ”महंगाई को रोकने के लिए जरूरत पड़ने पर और कदम उठाये जायेंगे“ इस तथ्य की पुष्टि के अलावा कुछ नहीं है कि वांछित सख्ती नहीं दिखाई गयी है।
»»  read more

आगरा इप्टा के नाटक 'किस्सा एक अजनबी का' का आमंत्रण


»»  read more
Share |

लोकप्रिय पोस्ट

कुल पेज दृश्य