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गुरुवार, 17 नवंबर 2011

‘वाल स्ट्रीट कब्जा करो’ आंदोलन का बेबाक संदेश

पूंजीवाद और लोकतंत्र सहयात्री नहीं हो सकते। पूंजीवाद वस्तुतः लोकतंत्र का निषेध है। यह बात पूंजीवाद का गढ़ अमेरिका में ही सिद्ध हो रही है, जहां लोगों ने एक फीसद धन पशुओं के खिलाफ 99 फीसद जनता का जनयुद्ध घोषित किया है। जनता के लिये जनता द्वारा जनता का जनतंत्र धनिकों के लिये धनिकों द्वारा धनिकों का धनतंत्र में तब्दील हो चुका है। ‘वालस्ट्रीट पर कब्जा करो’ के बैनर तले जुक्कोटी पार्क में बैठे नौजवान धनपशुओं के आवास मैनहट्टन में घुसकर लाभ-लोभ-लालच पर आधारित पूंजीवादी व्यवस्था को ललकार रहे हैं। साम्राज्यवादी दौलत की विश्व राजधानी न्यूयार्क डगमगा रहा है। फलतः औपनिवेशिक लूट का जमा धन पर मौज-मस्ती करने वाले अपने ही घरेलू असंतोष से लड़खड़ाते यूरो- अमेरिकी साम्राज्यवादी फिर से जड़ जमाने के लिए अपने आक्रामक मिसायलों को अरब- अफ्रीका की तरफ भिड़ा दिया है। लेकिन क्या एशिया- अफ्रीका के जाग्रत जनगण अपने अजस्र कच्चामाल के स्रोत खनिज संपदा, तेल भंडार और सबसे बढ़कर सस्ता श्रम और विशाल उपभोक्ता बाजार को फिर से विकसित औद्योगिक राष्ट्रों का चारागाह बनने देंगे? निश्चय ही ऐसा इतिहास फिर से नहीं दोहरायेगा। वॉलस्ट्रीट में बैठे आंदोलनकारियों की स्पष्ट मांग है कि पूंजीवादी लोकतांत्रिक राजनीति को आर्थिक समानता के साथ जोड़कर सार्थक जनवादी अर्थतंत्र बनाया जाय। उनका संदेश साफ हैः पूंजीवाद संकट पैदा करता है, स्वयं अपने लिये भी।
 ‘वाल स्ट्रीट कब्जा करो’ (ऑक्यूपाई वाल स्ट्रीट) आंदोलन शुरू हुए एक महीना से ज्यादा हो गया है। ऑक्यूपाई वाल स्ट्रीट का ;व्ॅैद्ध प्रारंभ 17 सितम्बर, 2011 को हुआ, जब सैकड़ों युवक युवतियांॅ न्यूयार्क के जुक्कोटी पार्क में जाकर बैठ गयी तो फिर वहां से हटने का नाम नहीं लिया। जुक्कोटी पार्क न्यूयार्क का हृदयस्थल मैनहट्टन इलाका में है। मैनहट्टन क्षेत्र में अमेरिका के बड़े धनाढ़यो के आलिशान आवास और दैत्याकार कार्पोरेट कार्टेलो के मुख्यालय है। सब जानते हैं कि वाल स्ट्रीट दुनिया का सट्टाबाजार और वित्त पूंजी का पर्याय है। स्वाभाविक ही था कि आंदोलनकारियों ने इसे ही अपना लक्ष्य बनाया। आंदोलनकारियों का प्रकट गुस्सा कार्पोरेट लूट के खिलाफ है। इन्होंने अमेरिका के एक फीसद धनिकों के खिलाफ 99 फीसद आम लोगों का युद्ध घोषित किया है।
 देखते-देखते इस आंदोलन का फैलाव संपूर्ण अमेरिका, योरप और विकसित देशों मे हो गया। अमेरिका के प्रायः सभी शहरों में जुलूस निकाले जा रहे हैं। मुख्य रूप से इनका लक्ष्य बैंक और वित्तीय संस्थान हैं। सभी जगह स्टॉक मार्केट और बैंकों के सामने आक्रोशपूर्ण विरोध प्रदर्शन लगातार हो रहे हैं। अखबारों के मुताबिक दुनिया के कोई एक हजार से ज्यादा शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए।
कौन हैं ये आंदोलनकारी
 इस आंदोलन का नेतृत्व कोई राजनीतिक दल नहीं करता है। इसका कोई एक नेता भी नहीं है। कार्पोरेट लोभ-लालच विरोधी कनाडियन ग्रुप एडबस्टर्स ने एक बड़ा आकर्षक पोस्टर तैयार किया, जिसमें शेयर मार्केट का प्रतीक सांड और पृष्ठभूमि में उपद्रवी पुलिस ;त्वपज चवसपबमद्ध की आक्रमकता चित्रित है। पोस्टर को विगत जुलाई महीने में न्यूयार्क के व्यस्त इलाके में लगाया गया। पोस्टर में आक्यूपाई वाल स्ट्रीट की अपील है। इस पोस्टर ने जनता का ध्यान बड़े पैमाने पर खींचा। तब अगस्त महीना में एक आई टी विशेषज्ञ ओ ब्रीयन ने इंटरनेट पर ट्वीटिंग और बहुत कुछ प्रारंभिक प्रचारात्मक काम न्ै क्ंल व ित्ंहम नाम से किया। किंतु आम लोगों के बीच जाने और जन आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार करने की निर्णायक भूमि का श्रेय न्यूयार्क के युवकों, कलाकारों और छात्रों की एक संगठित टोली को है। ”न्यूयार्कर्स एगेंस्ट बजट कट“ के बैनर तले पहले भी एक बड़ा आंदोलन चलाने का तजुर्बा इस टोली को था। इन लोगों ने छात्र संगठनों और ट्रेड यूनियनों के साथ मिलकर न्यूयार्क सिटी के मेयर द्वारा बजट प्रावधानों में कटौतियां और ले-आफ के विरूद्ध ब्लूमबर्गविले कार्यालय पर तीन सप्ताहों तक कब्जा कर लिया था। इसमें इन्हें कामयाबी मिली। मेयर ने बजट के कई जन विरोधी प्रावधान वापस लिये। आंदोलन के इस व्यवहारिक अनुभव ने इन्हें उत्साहित किया और ये वाल स्ट्रीट कब्जा के लिए आगे बढ़े। कारपोरेट/कार्टेल के भ्रष्ट कारनामे और मुनाफा कमाने का अनंत लोभ ने अमेरिकी जनगण को उस चौराहे पर पहुंॅचा दिया है, जहांॅ से आगे बढ़ने के लिए उसे नया रास्ता की तलाश है।
 इस आंदोलन को नेतृत्व करने का दावा, कोई व्यक्ति या समूह नहीं करता है। सभी फैसले जुक्कोटी पार्क में बैठे जनरल एसेम्बली में आम राय से किये जाते हैं। वे विभिन्न कामों के लिये अलग-अलग समूहों में भी बैठते हैं, चर्चा करते हैं और निर्णय लेते हैं। कभी-कभी आम राय बनाने में कई दिन लग जाते हैं। तब आम राय बनती है तो पार्क में उल्लास छा जाता है। यह बड़ा ही उत्तेजित करने वाला प्रेरक प्रसंग है। इस आंदोलन की विशेषताओं को निम्न प्रकार दर्ज किया जा सकता है:-
न यह एक व्यापक जन आंदोलन है। इसका कोई एक नेता नहीं है और ना ही कोई एक निश्चित विचारधारा, जिसकी पहचान विद्यमान राजनीति के फ्रेमवर्क में की जा सके।
न फिर भी आंदोलन लक्ष्यविहीन नहीं है और ना ही है दिशा विहीन। यह निश्चय ही वर्तमान अर्थव्यवस्था के खिलाफ विस्फोट है।
न इस आंदोलन में अराजकतावादियों समेत विभिन्न मतावलंबियों का पंचमेल संगम प्रकट है। इसके बावजूद इनका मजबूत नेटवर्किंग है और फैसला लेने के लिये एक ‘जनरल एसेम्बली’ भी है, जहां आमराय से सभी फैसले किये जाते हैं।
न आंदोलन का अब तक कोई मांग पत्र (चार्टर) तैयार नहीं है, फिर भी इनके नारों में मांगे स्पष्ट है। जैसे कार्पोरेट/कार्टेल का भ्रष्टाचार, लूट और लाभ- लोभ का विरोध, सैन्य उद्योग समूह नष्ट करना, मृत्युदंड समाप्त करना, सबको स्वास्थ्य प्रावधान, आर्थिक विषमता और बेरोजगारी।
न इनके नारों में ‘मुनाफा के पहले जनता’ ;च्मवचसम इमवितम चतवपिजद्ध और सीधा लोकतंत्र ;क्पतमबज क्मउवबतंबलद्ध बहुत लोकप्रिय है।
न आंदोलन के स्वरूप के बारे में इनकी ‘जनरल एसेम्बली’ की एकमात्र पसंदीदा मार्ग है ”सीधी अहिंसक कार्रवाई“ ;छवद अपवसमदज क्पतमबज ।बजपवदद्ध
न अनेक स्थानों में पुलिस हस्तक्षेप और गिरफ्तारियों के बावजूद आंदोलन आश्चर्यजनक शांतिपूर्ण है।
न आंदोलन का मुख्य निशाना बैंक, शेयर बाजार और वित्तीय संस्थान है।
गैर बराबरी तबाही का कारण
 नौजवानों के इस आंदोलन ने निःसंदेह अमेरिकी समृद्धि के गुब्बारे की हवा निकाल दी है। अमेरिका के लाखों लोग आज फूड कूपन पर गुजारा करते हैं। वे स्वास्थ्य बीमा के कवरेज से बाहर है। बेरोजगारी दो अंकों को चूमने को है। आर्थिक विषमता और नाबराबरी का फर्क आकाश पाताल का है। सिर्फ 400 अमेरिकी धनाढ्यों के पास इतनी संपदा इकट्ठी हो गयी है, जो 15 करोड़ आम अमेरिकियों की कुल जमा संपत्ति से ज्यादा है। अर्थात नीचे के 90 प्रतिशत जनसंख्या की सम्मिलित कुल संपदा से ज्यादा धन महज एक प्रतिशत धनिकों के हाथों में बंद है। ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक अमेरिकी की कुल आर्थिक उपलब्धियों को 65 प्रतिशत केवल एक प्रतिशत धनी हड़प लेते हैं।
 जहांॅ तक कर्मचारियों के वेतन में व्याप्त विषमता का प्रन है न्यूयाक्र स्टाक एक्सचेंज में कार्यरत कर्मचारियों का औसत वेतन 3,61,330 डालर है, जो अमेरिका के अन्य निजी क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों के वेतन की तुलना में साढ़े पांच गुना अधिक है। इसका अर्थ यह है कि औद्योगिक मजदूरों का वेतन वित्तीय क्षेत्र के मुकाबले साढ़े पांच गुना कम है। वर्ष 2010 के सर्वेक्षण के मुताबिक अमेरिका के 100 बड़ी कम्पनियों के प्रमुख कार्यकारी अफसरों का वेतन उस कम्पनी के द्वारा सभी तरह के टैक्स भुगतान की कुल धनराशि से ज्यादा था। प्रदर्शनकारियों ने बैनर लगाया है। ठंदामते ंतम इंपसमक वनजए ूम ंतम ेवसक वनज (बैंकर्स को राहत आम आदमी को आफत) प्रदर्शनकारी सख्त एतराज जताते हैं कि बैंकों के डूबने का जिम्मेदार आम आदमी नहीं है तो फिर आम आदमी बैंक डूबने की सजा क्यों भुगते?
 आम आदमी के कंधों पर वित्त संकट का हल निकाला जा रहा है। बैंक प्रमुखों के वेतन/पर्क्स नहीं काटे गये, जबकि कर्मचारियों का वेतन फ्रीज किया गया।
पूंजीवाद का अंतर्विरोध उबाल पर
 मंदी और वित्त संकट पर हाल के वर्षों में अनेक शोध ग्रंथ छपे हैं। उन शोध ग्रंथों की समीक्षा करते हुए प्रसिद्ध स्तंभकार निकोलस क्रीस्टौफ का न्यूयार्क टाइम्स मंे प्रकाशित एक आलेख काफी चर्चित हुआ है, जिसमें बताया गया है कि अमेरिका में उभर रही आर्थिक नाबराबरी न केवल सामाजिक तनाव पैदा करती है, बल्कि अर्थव्यवस्था को ही बर्बाद कर रही है।
 अर्थव्यवस्था के अमेरिकी शोधकर्ता कार्ल मार्क्स के कथन को सही ठहरा रहे हैं, जिसमें कहा गया है कि पूंजीवाद अपना कब्र खुद खोदता है। सभी शोध ग्रंथों का निचोड़ है कि सरकार के बेल आउट पैकेजों के अपेक्षित परिणाम नहीं आये।
 कार्नल विश्वविद्यालय के प्रो0 राबर्ट फ्रैंक ने अपनी पुस्तक ”द डार्विन इॅकानामी“ में दुनिया के 65 औद्योगिक देशों की अर्थव्यवस्था का अध्ययन किया गया है। इसमें इस तथ्य को उजागर किया गया है कि अर्थव्यवस्था में ज्यादा विषमता की अवस्था विकास दर को धीमा करती है। पुस्तक में यह निचोड़ निकाला गया है कि आय में अपेक्षाकृत ज्यादा समानता विकास दर तेज करती है, जबकि विषम आय की अवस्था में स्लोडाउन देखा गया है।
 इन शोध ग्रंथों के हवाले से निकोलस क्रीस्टौफ लिखते हैं कि अमेरिका के मामले में इन शोध ग्रंथों का यह मंतव्य बिल्कुल सही है। 1940 से 1970 तक अमेरिकी अर्थव्यवस्था का मजबूती से तेज विकास हुआ, क्योंकि लोगों ने ज्यादा समानता का उपभोग किया। उसके बाद विषमता फैली तो विकास धीमा दर्ज हुआ है। इसलिए आर्थिक विषमता जाहिरा तौर पर अर्थव्यवस्था को वित्तीय संत्राश और दिवालियापन में धकेलती है। (इंडियन एक्सप्रेसः 17 अक्टूबर, 2011)
एकमात्र पसंदीदा मार्ग
 इस आंदोलन के बारे में राजनेताओं में अल गौरे का बयान ध्यान देने लायक है। अल गौरे ने इसे ”लोकतंत्र का बुनियादी चित्कार“ ;च्तपउंस ैबतमंउे व िक्मउवबतंबलद्ध कहा है। अमेरिकी लोकतंत्र के बारे में प्रो0 नोम चौम्स्की का कथन है कि ”अमेरिका में लोकतंत्र काम नहीं करता है और यहां संसदीय पद खरीदे जाते हैं।
 पहले पहल अमेरिकी जनगण को इस तथ्य का अहसास हो रहा है कि राजनीतिक लोकतंत्र के साथ आर्थिक लोकतंत्र भी जरूरी है। लोकतंत्र की सार्थकता जनगण की आर्थिक खुशहाली में निहित है। अर्थपूर्ण लोकतंत्र के लिये जनगण की खुशहाली पहली शर्त है।
 कुछ दिन पूर्व एक अमेरिकी अर्थशास्त्री मुक्त बाजारवाद के गीत गाते थे। उनका उपदेश थाः सरकार का काम राज करना है। सरकार के लिए व्यापार और उद्योग परिचालन में दखल देना अनैतिक है। आज वे ही अर्थशास्त्री डूबे बैंकों को उबारने के लिये सरकारी सहायता के लिए हाथ फैला रहे हैं और सरकार भी मुक्तहस्त से उन्हें उपकृत भी कर रही है। यह बात जनता की समझ में आ गयी है कि सरकारी चिंता केवल कार्पोरेट मुनाफा को बचाने की है। इसलिये उन्होंने ‘मुनाफा के पहले इंसान’ ;च्मवचसम ठमवितम च्तवपिजद्ध का नारा दिया है।
 यहां यह बात खाश तौर पर गौर करने की है कि आंदोलनकारियों की रणनीति लंबी लड़ाई की है। इसलिये वे आंदोलन को शांतिपूर्ण बनाये रखने के लिए दृढ़ है। वे आंदोलन के दरम्यान ही संगठन का लोकतांत्रिक ढांचा भी तैयार करने में जुटे हैं। उनके सामने मार्टिन लूथर किंग और महात्मा गांधी की अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से जनता की व्यापक लामबंदी का प्रत्यक्ष इतिहास है। इसलिये आंदोलन की जनरल एसेम्बली ने काफी विचार विमर्श के बाद ”अहिंसक सीधी कार्रवाई“ ;छवद टपवसमदज क्पतमबज ।बजपवदद्ध को ”एकमात्र पसंदीदा मार्ग“ ;व्दसल बीवपबमद्ध का अवलंबन तय किया है। जाहिर है, लोक आकांक्षा की अभिव्यक्ति पर आधारित जनता का शांतिपूर्ण आंदोलनात्मक क्रियाकलाप एक शक्तिशाली विश्वव्यापी आयाम ग्रहण कर चुका है।
 आंदोलनकारी पूंजीवाद, समाजवाद जैसे प्रचलित जुमले इस्तेमाल नहीं करते हैं, पर वे कार्पोरेट लोभ और आर्थिक विषमता को बेबाक तरीके से बेनकाब करते हैं। इतना तय है कि अमेरिकी इतिहास में पहली मरतबा नौजवानों और आम लोगों ने बहुप्रचारित अमेरिकी समृद्धि पर सीधी ऊंगली उठायी है। पूंजी के जंगल में आग लगा चुकी है। यह दावानल रूकनेवाला नहीं है। इसे कतिपय रियायतों की घोषणा से दबाया नहीं जा सकता। यह संपूर्ण पूंजीवादी व्यवस्था के विरूद्ध प्रकट वर्ग युद्ध है। लोग समझने लगे हैं कि पूंजीवाद अपने आप में एक संकट है। पूंजीवाद समाधान नहीं है। जनगण की समस्याओं का समाधान कर पाने में विफल पूंजीवादी अर्थतंत्र में अंतर्निहित अंतविरोध का स्वतस्फूर्त विस्फोट है यह नौजवानों द्वारा शुरू किया गया आंदोलन। इसलिये ट्रेड यूनियनें, विभिन्न नागरिक समूह और आम लोग भी इसमें खींचते चले आ रहे हैं।
- सत्य नारायण ठाकुर
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आदिवासी महासभा का चौथा राष्ट्रीय सम्मेलन सम्पन्न

रायपुरः अखिल भारतीय आदिवासी महासभा का चौथा राष्ट्रीय सम्मेलन यहां 15, 16 और 17 अक्टूबर को बिरसामुंडा नगर (विप्र सांस्कृतिक भवन) में शहीद वीर नारायण सिंह कांफ्रेंस हाल में सम्पन्न हुआ। सम्मेलन का प्रारंभ 15 अक्टूबर, 2011 को एक अत्यंत शानदार रैली के साथ हुआ। उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा और बस्तर जिलों के आदिवासियों ने अपनी परम्परागत पोशाकों में और अपने जनजातीय सांस्कृतिक जत्थों के साथ नाचते-गाते हुए इस विशाल रैली में भाग लिया। रैली छततीसगढ़ की राजधानी रायपुर के प्रमुख रास्तों से होकर गुजरी।
 गांधी मैदान में पहुंचकर यह रंगारंग रैली एक विशाल आमसभा में बदल गयी जिसे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव ए0बी0 बर्धन के अलावा भारत जन आंदोलन के नेता डा0 बी0डी0 शर्मा, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम, जनक लाल ठाकुर, सुधा भारद्वाज, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो0 नंदिनी सुंदर, स्वतंत्रता सेनानी और रायुपर के पूर्व संसद सदस्य केयूर भूषण और मनीष कुंजाम ने संबोधित किया। रैली और आमसभा में छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, मजदूर कार्यकर्ता समिति, भारत जन आंदोलन, जनशक्ति संगठन, जनाधिकार संगठन, एकता परिषद आदि अन्य कई आदिवासी संगठनों और एनजीओ ने भी हिस्सा लिया। वास्तव में यह छत्तीसगढ़ के उन आदिवासी संगठनों का एक संयुक्त कार्यक्रम था जो ”छत्तीसगढ़ बचाओं आंदोलन“ नाम से संघर्षरत जनसंगठनों को हाल ही में एक मंच बनाकर अधिकाधिक एकजुट होकर काम करने की कोशिश कर रहे हैं। आदिवासी महासभा के झंडे के तले उड़ीसा, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से भी जनजाति रैलियां इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए पहंुची। केरल, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और गंुजरात से सम्मेलन में भाग लेने आये लगभग 400 डेलीगेटों ने इस रैली में हिस्सा लिया। रैली रेलवे स्टेशन से शुरू हुई और रायपुर के प्रमुख रास्तों से गुजरती हुई 6 किलोमीटर चलकर गांधी मैदान पहंॅुची।
 इस चौथे राष्ट्रीय सम्मेलन के डेलीगेटों, पर्यवेक्षकों, अतिथियों एवं आमंत्रितों को संबोधित करते हुए अपने उद्घाटन भाषण में भाकपा महासचिव ए0बी0 बर्धन ने आदिवासी नौजवानों की युवा पीढ़ी का आह्वान किया कि वह जल, जंगल और जमीन पर अपने अधिकारों के लिए जनजातियों, आदिवासियों के आंदोलन को अपना सर्वोच्च कार्य- दायित्व समझकर आंदोलन में सक्रिय हिस्सा लें ताकि आदिवासी लोगों के हितों पर कुठाराघात करने वाली नवदारवादी आर्थिक नीतियों के समर्थकों को करारा जवाब दिया जा सके। का0 बर्धन 1957 में इस अखिल भारतीय महासभा की स्थापना सम्मेलन केे मार्गदर्शकों में से हैं।
 अखिल भारतीय आदिवासी महासभा का यह चौथा राष्ट्रीय सम्मेलन हर लिहाज से अत्यंत सफल रहा। भाकपा महासचिव ए0बी0 बर्धन, लोकसभा के पूर्व स्पीकर पी0ए0 संगमा, जन आंदोलन के नेता, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो0 नंदिनी सुंदर, एडवोकेट सुधा भारद्वाज, हीरा सिंह मरकम, नेताजी राजगडकर, छत्रपति साही मुंडा, बीपीएस नेताम, जी0आर0 राणा, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के सीनियर एडवोकेट कनक तिवारी, छत्तीसगढ़ के राज्य सभा संसद सदस्य नंदकुमार साई सम्मेलन कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि थे। विभिन्न सामाजिक आर्थिक समझ और संगठनात्मक हितों के बावजूद उनका सबका इस मामले में एक समान दृष्टिकोण था कि देश के दस करोड़ के लगभग आदिवासियों को उनकी दासता से मुक्ति के लिए और उनके विकास के लिए उनका संघर्ष एकताबद्ध तरीके से और निर्णायक तौर पर चलाया जाना चाहिए। ए0बी0 बर्धन ने आदिवासियों के हितों एवं ध्येय के लिए संघर्षरत सभी लोगों का आह्वान किया कि वे आदिवासियों द्वारा एक अखिल भारतीय कार्रवाई के लिए एक संयुक्त एवं एकताबद्ध कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने के लिए एक अखिल भारतीय संयुक्त संघर्ष समिति का निर्माण करें।
 पी0ए0 संगमा ने अपने संबोधन में कहा कि आदिवासी युवा अपने आपको किसी भी दूसरे से नीचा या कम न समझें उन्हें अपनी आदिवासी पहचान और संस्कृति पर गर्व करना चाहिए। आज जरूरत इस बात की है कि आदिवासी लोग अधिकाधिक शिक्षित हो जैसे कि मिजोरम में हुआ है।
नंदकुमार सांई ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए सवाल किया कि मुख्य धारा के लोग किस बात में अपने आपको आदिवासी लोगों की पहचान और संस्कृति से बेहतर समझते हैं जबकि हम देखते हैं कि आज शहरी समाज अपराध, भ्रष्टाचार और भ्रष्ट संस्कृति का इतना अधिक शिकार हो चुका है। उनके मुकाबले हम आदिवासी लोग अपनी ग्रामीण बस्तियों में अपनी आदिवासी दुनिया में इस तरह के प्रदूषित वातावरण से आज भी मुक्त हैं। हमारी परेशानी तो गरीबी और अशिक्षा है जिसके विरूद्ध हमें संघर्ष करना होगा और एकताबद्ध होकर कोशिश करनी होगी।
 16 और 17 अक्टूबर को सम्मेलन के डेलीगेट सभा को ए0बी0 बर्धन के अलावा पी0ए0 संगमा, डा0 बी0डी0 शर्मा, गोडवाना गणतंत्र पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हीरा सिंह मरकम और नंदकुमार साई ने भी संबोधित किया। मनीष कुंजाम ने कार्य रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसके बाद विभिन्न राज्यों के 25 डेलीगेटों ने कार्य रिपोर्ट पर अपनी राय जाहिर करने के अलावा पिछले पांच सालों के दौरान अपने राज्यों में चलाये गये संघर्षों के बारे में बताया। कई डेलीगेटों ने बताया कि किस तरह राज्य सरकारों के समर्थन से कार्पोरेट घराने आदिवासियों की जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं और वनों को बर्बाद कर रहे हैं। उन्होंने रिपोर्ट की कि दलितों के पक्ष में संसद द्वारा बनाये गये कानूनों द्वारा आदिवासी लोगों को मिली अधिकारों का बड़े पैमाने पर हनन हो रहा है और आदिवासी इलाकांे के प्राकृतिक संसाधनों का बुरी तरह दोहन किया जा रहा है।
 सम्मेलन ने 9 से अधिक प्रस्ताव पारित किये जिनमें से एक प्रस्ताव का नाम है ”रायपुर घोषणा पत्र“। ”रायपुर घोषण पत्र“ में जागरूक आदिवासी संगठनों का आह्वान किया गया है कि वे एक मांग पत्र के आधार पर आदिवासियों द्वारा संघर्ष का एक राष्ट्रीय मंच बनाने के लिए आगे आयें और मिलकर काम करें। सम्मेलन ने तय किया कि मांग पत्र के सम्बन्ध में एक संयुक्त राष्ट्रीय अभियान खड़ा किया जाये और 2012 के अंत तक संसद के सामने आदिवासियों की एक विशाल रैली का आयोजन किया जाये।
 देश के विभिन्न भागों से आये 386 डेलीगेटों ने सम्मेलन में हिस्सा लिया। उनमें 167 डेलीगेट छत्तीसगढ़ से, 29 मध्य प्रदेश से, 13 राजस्थान से, 24 केरल से, 48 आंध्र प्रदेश से, 13 झारखंड से, 3 हिमाचल प्रदेश से, 4 गुजरात से, 12 महाराष्ट्र से, 43 पश्चिम बंगाल से और 30 ओड़िसा से थे। कुछ राज्यों से 17 पर्यवेक्षक भी सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए आये। सम्मेलन ने अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के निम्न नये पदाधिकारियों का चुनाव किया।
अध्यक्ष - मनीष कुंजाम;
महासचिव - छत्रपति साही मुंडा
वरिष्ठ उपाध्यक्ष - सी0आर0 बख्शी;
उपाध्यक्ष - मेघराज तावड़, जी0 डेमुडु, रामनाथ सर्फे, महावीर मांझी
उप महासचिव - शंकर नायक, सुखलाल गोडे
सचिव - एन0 राजन, शिव चरण मुंडा
 उपाध्यक्ष के एक पद को खाली रखा गया है जिसे तमिलनाडु से भरा जायेगा। तमिलनाडु में स्थानीय निकायों के चुनाव के कारण वहां से सम्मेलन में डेलीगेट नहीं आये। सचिव का एक पद भी खाली रखा गया है जिसे महाराष्ट्र आदिवासी महासभा के शीघ्र होने वाले राज्य सम्मेलन के बाद महाराष्ट्र से भरा जायेगा।
 राष्ट्रीय कार्यकारिणी में केरल से श्रीमती ईश्वरी रेसान और पी0 प्रसाद, आंध्र प्रदेश से रवीन्द्र कुमार, पी0 वेंकटेश्वर और कुंजा सिनू, मध्य प्रदेश से जानकी बाई और बैराग सिंह टेकस, राजस्थान से साधना मीणा और बाबूलाल कलसुआ, उड़ीसा से हलधर पुजारी और वासुदेव भोई, झारखंड से लक्ष्मी लोहारा, अनिल असुर और भूतनाथ सोरेन, महाराष्ट्र से गंगाधर नामदेव गेडाम और नामदेव कन्नाके, पश्चिम बंगाल से जीतू सोरेन, कोमल सरदार, सनातन किस्कू और विष्णु पाहन, गुजरात से धारूबाई शामाभाई वलावी, छत्तीसगढ़ रमा सोडी, नंदराम सोडी, श्रीमती कुसुम और रमेश गावडे और दिल्ली से प्रकाशचंद झा को शामिल किया गया।
 तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए हरेक के लिए एक स्थान खाली रखा गया है जो बाद में भरा जायेगा। असम, मणिपुर और त्रिपुरा से बाद में तीन नाम और शामिल करने के लिए तय किया गया।
 अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के नव निर्वाचित महासचिव छत्रपति साही मंुडा ने घोषणा की कि महासभा का अगला सम्मेलन तीन वर्ष बाद झारखंड में किया जायेगा। प्रतिनिधियों ने इसका स्वागत किया।
सम्मेलन के दौरान निम्न विषयों पर सेमिनारों का आयोजन भी किया गया -
1. आदिवासी समुदायों के संवैधानिक अधिकारों का दमन;
2. आर्थिक नीतियों का उदारीकरण और आदिवासी समुदायों पर इसका प्रभाव
  इन सेमिनारों के पी0ए0 संगमा, डॉ0 बी0बी0 शर्मा, अरविंद नेताम, बीपीएस नेताम, छत्रपति साही मुंडा, नंदकुमार साई, संजय पराटे और मुमताज भारती ने संबोधित किया। सेमिनार अत्यंत सफल रहे।
 डेलीगेट सत्रों का संचालन मीनष कुंजाम, श्रीमती ईश्वरी रेसान, मेघराज तावड़, जी0 डेमुडु, नामदेव कन्नाके, श्रीमती जानकी देवी, जीतू सोरेन और हलधर पुजारी ने किया। सभी डेलीगेट और आमंत्रित नये उत्साह और संघर्षों के लिए दृढ़ संकल्प के साथ अपने- अपने राज्यों को वापस गये।
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भारतीय खेत मजदूर यूनियन का राष्ट्रीय सम्मेलन सम्पन्न

कुरूक्षेत्र 16 अक्टूबर। भारतीय खेत मजदूर यूनियन के 12वें राष्ट्रीय अधिवेशन को आज सम्बोधित करते हुए भाकपा महासचिव का. ए. बी. बर्धन ने प्रतिनिधियों को आगाह किया कि बिना संगठन के कोई भी आंदोलन सफल नही होता। जब तक खेत मजदूरों का मजबूत संगठन नहीं होगा और लोगों को उसमें एक ताकत नजर नही आयेगी तब तक उनकी बातों को कोई नही सुनेगा। उन्होने पूरे देश से आये प्रतिनिधियों का आह्वान किया कि अपने-अपने क्षेत्रों में जाकर यूनियन को मजबूत करने के लिये गांव-गांव में कमेटियों का गठन करें और खेत मजदूरों में वर्गीय चेतना पैदा करते हुए निचले स्तर पर आंदोलन को संगठित करें। उन्होंने आह्वान किया कि यूनियन की सदस्यता को बढ़ा कर दो गुना किया जाये।
देश में किसानों-मजदूरों के हालात लगातार खराब होते जाने के तथ्य का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें किसानों की बेशकीमती जमीनों का अधिग्रहण करके बड़े-बड़े सरमायेदारों को सेज़ आदि के नाम पर दे रही हैं, जिसके चलते किसानों को भी खेत मजदूरों की कतारो में शामिल होना पड़ रहा है। उन्होने कहा कि देश में खेत मजदूरों के पास रहने के लिए आवास की जगह नही है, मनरेगा में आकंठ भ्रष्टाचार है, खेत मजदूरों के लिए कोई कानून नही है, इन सब मांगों को लेकर खेत मजदूरों को अपनी आवाज बुलन्द करते हुए व्यापक तथा अनवरत संघर्ष चलाना होगा।
संप्रग सरकार को घपलों-घोटालों की सरकार बताते हुए उन्होंने कहा कि उसके कई मंत्री आज जेल में हैं लेकिन प्रधानमंत्री बड़ी बेशर्मी से विकास का राग अलापे जा रहे है और स्वंय को भष्ट्राचार के मामले में पाक-साफ बताते हुए नही थकते। संप्रग-1 सरकार के दौरान जहां महंगाई पर काफी हद तक नियंत्रण रहा तो वामपंथ के कमजोर होने के कारण संप्रग-2 सरकार ने महंगाई के सारे रिकार्ड तोड़ दिये। उन्होंने कहा कि विपक्षी दल भाजपा के मुख्यमंत्री तक जेल में बंद है और कई अन्य नेता जेल की हवा खा रहे है। कंाग्रेस-भाजपा की आर्थिक नीतियों को एक बताते हुए उन्होंने कहा कि भूमंडलीकरण-उदारीकरण-निजीकरण की आर्थिक  नीतियों पर अमल के चलते आज कारर्पोरेट घराने और बड़े पूंजीपति लोगों की मेहनत को लूट कर बेहिसाब सम्पति के मालिक बन बैठे हैं। उन्होंने आगाह किया कि भ्रष्टाचार रोकने के लिये केवल कानून बनाने से काम नहीं चलेगा बल्कि सरकार की नव उदारवादी नीतियों को पलटना पड़ेगा। सम्मेलन को भाकपा की ओर से शुभकामनायें देते हुए का. बर्धन ने खेत मजदूरों के आन्दोलन को पार्टी की ओर से पूर्ण रुप से मदद करने का आश्वासन भी दिया।
उनके कुरुक्षेत्र पहुंचने पर सैंकड़ो लाल झंडे लगी मोटर साईकलों पर सवार नौजवानों ने जी.टी. रोड़ पीपली पर कामरेड बर्धन का गगनभेदी नारों से अभिनन्द किया गया और ढ़ोल-नगाड़ो तथा नारों के साथ जलूस की शक्ल में उन्हें सम्मेलन स्थल (भान सिंह भौरा नगर) लाये जहां प्रतिनिधियों ने खड़े होकर उनका अभिनन्दन किया। का. अजय चक्रवर्ती, का. नागेन्द्र नाथ ओझा सहित बीकेएमयू के नेतागण उन्हें मंच पर लाए।
बीकेएमयू के राष्ट्रीय सम्मेलन के पूर्व कामरेड अनन्त राम मैदान (थीम पार्क) में यूनियन के प्रदेष अध्यक्ष जिले सिंह पाल की अध्यक्षता में आयोजित अधिकार रैली का संचालन यूनियन के राज्य महासचिव दरियाव सिंह कश्यप ने किया। सभा में हरियाणा के विभिन्न जिलों के अलावा पंजाब के पटियाला से हजारों की संख्या में खेत मजदूरों ने भाग लिया।
भाकपा की राष्ट्रीय परिषद की सचिव का. अमरजीत कौर ने विशाल सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार ने जीवन को नरक बना दिया है। आज मजदूरों खासकर खेत मजदूरों के लिए न आवास की जगह है न दवाई और शिक्षा का कोई प्रबन्ध है। दूसरी ओर धनकुबेरों के धन का कोई अंदाजा नहीं लगा सकता, एक-एक धनपति के पास 26-26 मंजिले मकान हैं, उनकी दैनिक आमदनी लाखों करोड़ो में है। भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे अपने तमाम मंत्रियों के बीच खड़े मनमोहन सिंह स्वयं को बार-बार पाक साफ कहते नहीं थकते। उन्होंने राष्ट्रीय व अर्न्तराष्ट्रीय घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि पूंजीवाद के रहते दुनिया से आतंकवाद, भ्रष्टाचार और गरीबी नहीं मिट सकती। इसलिए मजदूरों, किसानों, कर्मचारियों को मिलकर पूंजीवाद व्यवस्था को ही समाप्त करके समाजवादी व्यवस्था कायम करनी होगी।
भाखेमयू के राष्ट्रीय महासचिव नागेन्द्र नाथ ओझा ने सभा को सम्बोधित करते हुए खेत मजदूरों के लिए चलाई जा रही तमाम योजनाओं के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाने का जिक्र करते हुए कहा कि मनरेगा से कुछ आस थी लेकिन इस पर भी ईमानदारी से अमल नहीं हुआ और अन्य कानूनों की तरह यह भी दम तोड़ रहा है। उन्होंने कहा कि भाखेमयू का कुरूक्षेत्र में हो रहा 12वां सम्मेलन खेत मजदूरों के आन्दोलन में मील का पत्थर सबित होगा।
सभा को यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद अजय चक्रवर्ती, पंजाब खेत मजदूर सभा के महासचिव गुलजार सिंह गोरिया, भाकपा राज्य सचिव रघुबीर सिंह चौधरी, भाकपा के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व विधायक डा. हरनाम सिंह, यूनियन की जनरल कौसिंल के सदस्य प्रेम सिंह आदि नेताओं ने सम्बोधित किया।
16 अक्टूबर को कामरेड भान सिंह भौरा नगर (पंजाबी धर्मशाला) में भाखेमयू का 12वां राष्ट्रीय महाधिवेषन पंजाब में आतंकवाद के दौर में आतंकवादियों से लड़ने वाले खेत मजदूर यूनियन के प्रसिद्ध नेता स्वर्ण ंिसंह नागो के द्वारा झण्डा फहराने के साथ विधिवत रूप से शुरू हुआ। सम्मेलन में देश भर से लगभग 600 प्रतिनिधि के साथ ही फ्रांस की ट्रेड यूनियन - ‘सीजीटी’ के राष्ट्रीय सचिव क्रस्टियन एल्यूम एवं ‘इन्टरनेशल ऑफ वर्करस इन एग्रीकल्चर’ के सचिव जूलियन हक भी शामिल हुए। दोनों विदेशों बिरादराना मेहमानों ने सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए खेत मजदूरों के आन्दोलन की सफलता की आकांक्षा व्यक्त की। सम्मेलन की अध्यक्षता अजय चक्रवर्ती, के. इस्माईल, जी. मल्लेष, एन. जतीश्वर, विश्वनाथ षास्त्री, दरियाव सिंह कश्यप, के. रत्नाकुमारी, गुलजार सिंह गौरिया के अध्यक्ष मण्डल ने की।
भाखेमयू के महासचिव नगेन्द्र नाथ ओझा ने रिपोर्ट का मसविदा पेश किया है। सम्मेलन के आरम्भ में भाखेमयू के राष्ट्रीय सचिव वी. एस. निर्मल ने आलोच्य अवधि में दिवंगत हुए सथियों के प्रति श्रद्धांजलि प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिस पर सम्मेलन में शामिल प्रतिनिधियों ने दिवंगत साथियो को खड़े होकर मौन श्रृद्धांजलि दी।
सम्मेलन ने मनरेगा में भ्रष्टाचार दूर करने, 200 दिन काम देने और 200 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी की दर रखने की मांग की। उदारीकरण, भूमंडलीकरण और निजीकरण की नीतियों को मंहगाई का जिम्मेदार बताते हुए सम्मेलन ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत कर उसे सार्वभौमिक बनाने की मांग की। भूमिहीनों को बीपीएल में शामिल कर 1 रुपये की दर से पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न मुहैया कराने तथा भोजन और पोषण के अधिकार को बुनियादी अधिकार घोषित करने की मांग की गयी। एक अन्य प्रस्ताव में दलितों व महिलाओं पर बढ़ रहे अत्याचारों पर गम्भीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा गया कि अनूसूचित जनजातियों के उत्थान के लिए संवैधानिक बचाव किया जाये और साथ ही अत्याचार निरोधक कानून 1989 और अनूसूचित जाति और अनूसूचित जनजाति आयोग, मानवाधिकार आयोग अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कल्याण आदि संस्थानों के कार्यों की समीक्षा के साथ-साथ अत्याचार निरोधक कानून पर सख्ती से अमल कर अपराधियों की सजा में वृद्धि करने की मांग की गयी। सम्मलेन में केन्द्र और राज्य सरकारों से मांग कि गई कि 55 वर्ष की उम्र से सभी खेत मजदूरों के लिए पेंशन कानून बनाकर 2000 रुपये मासिक पेंशन दी जाये।
महासचिव द्वारा पेश कार्यवाही रिपोर्ट पर धीरेन दास गुप्ता, रामकृष्ण पांडा, के. ई. हनीफा, मनोहर टकसाल, ए. राममूर्ति, जी मल्लेश विधायक, जे. विल्सन एमएलसी, देवी दीन यादव, संजीव राजपूत, ओपेन्द्र चौरसिया, विश्वनाथ शास्त्री, फूल चंद यादव, गुलजार सिंह गोरिया, स्वर्ण सिंह नागोके, दरियाव सिंह कश्यप, जिले सिंह आदि ने सकरात्मक विचार रखे और खेत मजदूरों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए मजबूत संगठन बनाने पर जोर दिया। चर्चा के बाद महासचिव के उत्तर देने के बाद रिपोर्ट को सर्वसम्मति से पारित किया गया। सम्मेलन ने ए. रामामूर्ति द्वारा पेश क्रेंडिशियल कमेटी की रिपोर्ट तथा वी. एस. निर्मल द्वारा पेश आय-व्यय की रिपोर्ट भी पारित की। अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन के राष्ट्रीय सचिव सुनीत चोपड़ा ने सम्मेलन की सफलता की कामना की। महाधिवेशन को सम्बोधित करते हुए एटक की सचिव अमरजीत कौर ने कहा कि कांग्रेस-भाजपा आर्थिक नीतियों का गन्दा खेल चला रही हैं, जिससे देश भर में महंगाई और भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। 8 नवम्बर को ट्रेड यूनियनों द्वारा जेल भरो-रास्ता रोका-रेल रोको अन्दोलन चलाया जायेगा। सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव अतुल कुमार अंजान ने केन्द्र और राज्य की कांग्रेस सरकार पर बरसते हुए कहा कि सरकार जनता पर कोढ़ की तरह चिपकी हुई है जिसे हटाने के लिए आंदोलन तेज करना होगा। भारतीय महिला फेडरेशन (एनएफआईडब्लू) की राष्ट्रीय महासचिव एनी राजा, अखिल भारतीय नौजवान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कामरेड कश्मीर सिंह गदईया, आल इंडिया स्टूडेन्ट्स फेडरेशन के केन्द्रीय वित सचिव एवं हरियाणा संयोजक रोशन लाल सुचान, हरियाणा बैंक इम्पलाइज फेडरेशन के महासचिव एन. पी. मुजंाल आदि नेताओं ने अपने-अपने संगठनों की ओर से सम्मेलन में शामिल प्रतिनिधियों का अभिनंदन करते हुए सम्मेलन की सफलता की कामना की।
सम्मेलन ने 131 सदस्यों की जनरल कौसिंल का चुनाव किया गया और 35 सदस्यों की केन्द्रीय कार्यकारिणी निर्वाचित करने के साथ-साथ के. ई. इस्माईल को अध्यक्ष, जी. मल्लेश, विश्वनाथ शास्त्री, सिद्दी वैंक्टश्वरलू, धीरेन दासगुप्ता एवं आर. मुथरसन को उपाध्यक्ष, नागेन्द्र नाथ ओझा को महासचिव, विजेन्द्र सिंह निर्मल, गुलजार सिंह गोरिया, जे. विल्सन, जानकी पासवान व सुरेन्द्र राम को सचिव एवं दरियाव सिंह कश्यप को कोषाध्यक्ष चुना गया।
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अंजुमन तरक्की पसंद मुसनफीन का राष्ट्रीय सम्मेलन

कोलकाताः रचनात्मक लेखन के जरिए तर्कबुद्धिवाद, मानव मूल्यों, समानता, शांति, धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र और सामाजिक एवं आर्थिक न्याय के लिए अपनी प्रतिद्धता को दोहराते हुए अंजुमन तरक्कीपसन्द मुसनफीन (प्रगतिशील लेखक संघ- उर्दू) ने 29 और 30 अक्टूबर को यहां मुस्लिम हॉल में आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन में लेखकों, कवियों, साहित्य- आलोचकों और बुद्धिजीवियों का आह्वान किया कि वे पहले से अधिक सतर्क एवं सक्रिय रहें क्योंकि आज की चुनौतिया पहले कभी से अत्यंत गंभीर हैं।
 सम्मेलन में देश के 10 राज्यों से आये 102 डेलीगेटों समेत एक हजार से अधिक लोग शामिल थे। सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए प्रख्यात शायर और गीतकार अख्तर जावेद ने कहा कि 1930 के मध्य दशक में जब प्रगतिशील लेखक संघ बना था उस समय अंग्रेजों की औपनिवेशिक गुलामी को खत्म करना मुख्य लक्ष्य था, पर आज हमारे सामने उससे भी अधिक दुश्मन और चुनौतियां हैं। स्वाधीनता संघर्ष में और स्वाधीनता के बाद सामाजिक एवं आर्थिक न्याय के लिए संघर्ष में लेखकों एवं कवियों द्वारा गौरवपूर्ण योगदान को याद कराते हुए जावेद अख्तर ने कहा कि भूमंडलीकरण ने हमारे सामने दो चुनौतियां पेश कर दी हैं। एक तरफ, जो लोग एक धु्रवीय व्यवस्था थोपना चाहते हैं और समाज एवं प्रकृति प्रदत्त समस्त चीजों को हड़पना चाहते हैं, वे तमाम उदात्त मानवीय मूल्यों एवं परम्पराओं पर हमले कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ टेक्नालोजी का विकास आम जनगण से सम्प्रेषण करने के प्रश्न पर गंभीर खतरा पेश कर रहा है। ‘हम’ का स्थान ‘मैं’ ले रहा है। उन्होंने फिल्म उद्योग का उदाहरण दिया और कहा कि 1960-60 के दशकों में फिल्में आम लोगों के जीवन और समस्याओं को प्रदर्शित करती थी जबकि आज की फिल्मों का मनोरंजन के जरिए पैसा कमाने के लिए पूरी तरह व्यवसायीकरण किया जा रहा है। कम्प्यूटर के आविष्कार और सम्प्रेक्षण के नये मंच के कारण पैदा होने वाली समस्याओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि प्रगतिशील लेखक संघ को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए इन नये रूपों का इस्तेमाल करने की संस्कृति को विकसित करना होगा।
 उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात विद्वान एवं धर्मनिरपेक्षता के एक योद्धा डा0 असगर अली इंजीनियर ने कहा कि धार्मिक रूढ़िवादी एवं कट्टरपंथी ताकतों का खतरा कई गुना बढ़ गया है। ये विचारधाराएं केवल आतंकवाद को ही नहीं पैदा करती और बढ़ाती बल्कि वे वास्तव में तमाम मानवीय मूल्यों एवं संस्कृति को बरबाद करने पर आमादा हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि प्रगतिशील लेखक संघ हमेशा से तर्कसंगत सोच पर डटा रहा है और आज यह और भी अधिक जरूरी हो गया है कि हम इस परम्परा पर दृढ़तापूर्वक चलें। आम जनता जिन परेशानियों- मुसीबतों से दो-चार हैं उन्हें सामने लाते हुए धर्मनिरपेक्षता और तर्कसंगत सोच को आगे बढ़ाना है। उन्होंने कहा कि ”वाल स्ट्रीट पर कब्जा करो“ का जो आंदोलन न्यूयार्क से शुरू होकर यूरोपीय संघ देशों के 1500 शहरों तक फैल चुका है उसने उन एक प्रतिशत लोगों को, जो सब कुछ हड़पना चाहते हैं और ऐसी व्यवस्था थोपना चाहते हैं जिसमें जनता की कोई आवाज न हो, जनता की कोई सुनवाई न हो, अपना निशाना बनाते हुए एक नया नारा दिया है ”हम 99 प्रतिशत हैं“
 कोलकाता सम्मेलन की पृष्ठभूमि में जाते हुए बहुभाषी प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव डा0 अली जावेद ने कहा कि उर्दू के रचनाकार लेखकों का एक अखिल भारतीय संगठन बनाने का फैसला 1975 में प्रगतिशील लेखक संघ फेडरेशन के गया सम्मेलन में लिया गया था। उसके अनुसार 1976 में इसे दिल्ली में गठित किया गया। गठन के बाद पहले दशक में इसने ठीकठाक काम किया पर जब इसके महासचिव डा0 कमर रईस को पेशेवर नियुक्ति पर देश से बाहर जाना पड़ा तो संगठन का काम ठप्प हो गया। 1995 में हैदराबाद में एक सम्मेलन किया गया। पर नया नेतृत्व एक नियमित तरीके से इसकी गतिविधियां नहीं चला पाया। इसके विभिन्न कारण थे। अन्ततः 2008 में आजमगढ़ में एक सम्मेलन किया गया और नया नेतृत्व कई राज्य इकाईयों को फिर से सक्रिय कर सका। यह सम्मेलन निर्धारित समय पर हो रहा है, इसमें 10 राज्यों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं।
 उद्घाटन सत्र को उर्दू माहनामा हयात के सम्पादक शमीम फैजी, डा0 शारीब रूदौलवी, डा0 खगेन्द्र ठाकुर और प्रो0 लुतुर रहमान ने भी संबोधित किया। पश्चिम बंगाल प्रगतिशील लेखक संघ के अमिताभ चक्रवर्ती और पश्चिम बंगाल प्रगतिशील लेखक संघ (हिन्दी) के बृजमोहन ने अपने संगठनों के अभिनन्दन संदेश पढ़े। अखिल भारतीय जनवादी लेखक संघ के महासचिव डा0 मुरली मनोहर  प्रसाद सिंह और प्रगतिशील लेखक संघ के वेटरन और रोजाना आबशार के संपादक सालिक लखनवी और अकील रिज्वी जैसे लोगों के भी अभिनन्दन संदेश मिले। पीडब्लूए (उर्दू) की महासचिव डा0 अर्जुमंद आरा ने उद्घाटन सत्र की कार्यवाही का संचालन किया। मुख्य आयोजनकर्ता जमील मंजर ने स्वागत भाषण पढ़ा।
 सम्मेलन की एक विशेष बात थी महिलाओं की बड़ी संख्या में शिरकत जो न केवल दूसरे राज्यों से बल्कि मेजबान राज्य से भी आयी। मंच का नाम डा0 राजबहादुर गौड़ के नाम पर रखा गया जिनका 7 अक्टूबर को निधन हो गया था।
 उद्घाटन सत्र के बाद दो दिनों में दो और सत्र हुए। ”75 वर्ष और लेखकों की जिम्मेदारियां” पर बड़ा अच्छा सेमिनार हुआ। देश भर से आये सम्मेलन में शिरकत करने वाले 23 लोगों ने उद्घाटन सत्र के दौरान व्यक्त भावना का प्रदर्शन किया और अत्यंत उपयोगी सुझाव एवं राय दी। इलाहाबाद के डा0 अली अहमद फातमी ने साहित्य एवं संस्कृति पर भूमंडलीकरण के असर पर विस्तारपूर्वक बातें की और कहा कि बहुराष्ट्रीय निगमों का हमला उस हमले से भी अधिक गंभीर है जिससे हमें उस वक्त दो चार होना पड़ा था। जब ईस्ट इंडिया कम्पनी ने ब्रिटिश उपनिवेशीकरण शुरू किया था। विचार विमर्श में हारून बीए, लतीफ जाफरी एवं एम0 हबीब (दोनों महाराष्ट्र से), फखरूल करीम, शाहीना रिजवी, डा0 तसद्दुक हुसैन एवं नरगिस फातिमा (उत्तर प्रदेश से), सलमान खुर्शीद एवं शकील अफरोज (पश्चिम बंगाल से), शाहिद महमूद (आंध प्रदेश से) डा0 सरवत खान (राजस्थान), डा0 अफसाह जफर, कृष्णानंदन एवं लुफ्तुर रहमान (बिहार), डा0 बदर आलम (झारखंड), डा0 अबु बकर अब्बाद एवं डॉ0 काजिम (दिल्ली) के अलावा आरिफ नकवी ने भी भाग लिया जो सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए खासतौर पर बर्लिन से आये थे। नकवी ने सत्रों को भी संबोधित किया। ख्वाजा नसीम अख्तर ने कार्यवाहियों का संचालन किया।
 अगले दिन की सुबह कोलकाता के प्रख्यात उर्दू शायर परवेज शाहिदी की जन्मशताब्दी जयन्ती को समर्पित थी। डा0 अफसाह जफर ने परवेज शाहिदी के जीवन एवं कृतित्व पर एक बड़ा ही दिलचस्प पेपर पढ़ा। परवेज शाहिदी एक शायर तो थे ही वह अपने जमाने के एक जाने- पहचाने कम्युनिस्ट नेता भी थे। इस प्रसंग में लेखकों एवं कवियों द्वारा सक्रिय राजनीति में हिस्सा लेने के बारे में एक सवाल उठाया गया। सम्मेलन में शिरकत करने वाले अनेक लोगों ने मखदूम मोहिउद्दीन और पाब्लो नेरूदा के उदाहरा बताये जो महान कवि भी थे और साथ ही महान राजनेता भी। यह उल्लेख किया गया कि परवेज शाहिदी को वह अहमियत नहीं मिली जिसके वह हकदार थे। डा0 आसिम शाहनवाज शिब्ली ने कार्यवाहियों का संचालन किया।
 अंतिम सत्र में संगठन पर विचार-विमर्श हुआ। अर्जुमंद आरा ने आजमगढ़ सम्मेलन के बाद से किये गये कामों पर रिपोर्ट पेश की। प्रगतिशील लेखक संघ (उर्दू) के भावी ढांचे पर दिलचस्प, कभी-कभी गर्मागर्म बहस हुई। गया के इस फैसले की फिर से पुष्टि करने के लिए कि प्रगतिशील लेखक संघ (उर्दू) बहुभाषी प्रगतिशील लेखक संघ (संघात्मक इकाई) का एक सम्बद्ध संगठन है, एक प्रस्ताव पारित किया गया।
 नये पदाधिकारियों की सूची का अनुमोदन किया गया जिसमें संरक्षकों का एक पैनल, एक अध्यक्षमंडल और एक सचिव मंडल शामिल है। रतन सिंह, कश्मीरी लाल जाकिर, डा0 अकील रिज्वी, जोगिन्दर पाल, इकबाल मजीद सालिक लखनवी, डा0 असगर अली इंजीनियर, इकबाल मतीन, आबिद सुहैल और जावेद अख्तर जैसे उर्दू के बड़े लेखक और कवि संरक्षक मंडल में हैं। डा0 शारिब रूदौलवी अध्यक्षमंडल के चेयरमैन हैं। डा0 अली अहमद फातमी और डा0 अर्जुमंद आरा को नये महासचिव चुना गया। नुसरत मोहिउद्दीन, हरगोविन्द शाह और डा0 शाहिनी परवीन को सचिव चुना गया। जमील मंजर, जिन्होंने इस दो दिवसीय सम्मेलन के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, कोषाध्यक्ष चुना गया। 21 सदस्यीय कार्यकारिणी समिति चुनी गयी जिसकी वर्ष में एक बार बैठक होगी। बिहार प्रगतिशील लेखक संघ ने पहली कार्यकारिणी की बैठक की मेजबानी के लिए और इलाहाबाद ने दिसंबर में पदाधिकारियों की पहली बैठक के लिए मेजबानी की दावत दी।
 मुस्लिम इंस्टीट्यूट हॉल में एक मुशायरे के साथ दो दिवसीय सम्मेलन का समापन हुआ। मुशायरे में देश के विभिन्न हिस्सों से आये शायरों ने अपने गजलें और नज्में सुनायी। मुशायरा सुनने के लिए बड़ी तादाद में लोग आये।
 95 वर्षीय सालिक लखनवी उन बहुत ही चंद लोगों में से है जिन्होंने 1936 में प्रगतिशील लेखक संघ के स्थापना सम्मेलन में भाग लिया था। वह इस सम्मेलन में नहीं आ पाये। डॉ0 अली जावेद, डा0 अर्जुमंद आरा और शमीम फैजी उनसे मिलने उनके आवास पर गये और प्रगतिशील लेखक संघ के इस वेटरन के लिए खासतौर पर तैयार किया गया मीमेंटो (स्मृति चिन्ह) उन्हें भेंट किया।
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नौजवान सभा का राज्य सम्मेलन गाजियाबाद में सम्पन्न

गाजियाबाद 16 अक्टूबर। 15-16 अक्टूबर 2011 को गाजियाबाद में अखिल भारतीय नौजवान सभा, उत्तर प्रदेश का राज्य सम्मेलन उत्साहपूर्ण माहौल में सम्पन्न हुआ। राज्य सम्मेलन 15 अक्टूबर 2011 को प्रातः सेठ मीनामल धर्मशाला के सभागार में विनय पाठक, निधि चौहान तथा जावेद खान सैफ के अध्यक्षमंडल की अध्यक्षता में प्रारम्भ हुआ।
सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश ने उदारीकरण एवं निजीकरण की प्रतिगामी आर्थिक नीतियों पर प्रहार करते हुए कहा कि केन्द्र सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार ने पूंजी परस्त नीतियों पर चल कर नौजवानों के भविष्य को खतरे में डाल दिया है। सरकारों द्वारा निर्धारित नीतियों के कारण देश में विषमतायें बढ़ती चली जा रही हैं। गरीब और गरीब होता चला जा रहा है और देश की पूंजी चंद अमीरों के पास एकत्रित हो गई है। सब कुछ बाजार के लिए खोल दिया गया है। नौजवानों की बेरोजगारी दूर करने, अच्छी एवं निःशुल्क शिक्षा देने, स्वास्थ्य की देखरेख करने की सारी जिम्मेदारी सरकारों ने अपने कंधों से उतार कर बाजार की शक्तियों को दे दी है। इसी कारण समाज में भ्रष्टाचार की सारी सीमायें टूट गई हैं और काला धन विदेशी बैंकों में जमा हो रहा है। यह काला धन एक अपसंस्कृति को जन्म दे रहा है। उन्होंने नौजवानों का आह्वान किया कि वह अपने संगठित एवं संयमित आन्दोलन से इन परिस्थितियों को बदलें और सामाजिक परिवर्तन के लिए संघर्षों को आयोजित करें।
उद्घाटन भाषण के पूर्व शहर के प्रसिद्ध समाजसेवी एवं पत्रकार तथा सम्मेलन के स्वागताध्यक्ष शकील अहमद सैफ ने उपस्थित प्रतिनिधियों एवं आगन्तुकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि गाजियाबाद 1857 की क्रान्ति का प्रमुख केन्द्र था और कई बार बंटने के बावजूद क्रान्ति की ज्वाला यहां निरन्तर प्रज्वलित है। उन्होंने आशा जताई कि सम्मेलन के प्रदेश के कोने-कोने से आये प्रतिनिधिगण गाजियाबाद की क्रान्तिकारी धरा से संघर्षों के ऐसे संकल्पों को लेकर अपने-अपने इलाकों को वापस जायेंगे कि पूरे प्रदेश में सामाजिक परिवर्तन के संघर्षों की प्रचण्ड ज्वाला दहक उठे।
नौजवान सभा के राष्ट्रीय महामंत्री पी. सन्दोश ने उद्घाटन सत्र में सम्मेलन के प्रतिनिधियों तथा अतिथियों को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए कहा कि नौजवान सभा पूरे भारत में नौजवानों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही है। नौजवान सभा ने ही सबसे पहले 18 वर्ष की उम्र में वोट डालने के अधिकार की मांग उठाई थी। उसके संघर्ष के कारण ही आज नौजवान 18 वर्ष की उम्र में वोट डालने का अधिकार प्राप्त कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि नौजवान सभा भ्रष्टाचार, मंहगाई तथा रोजगार प्राप्त करने के लिए निरन्तर संघर्ष जारी रखेगी। उन्होंने कहा कि इस समय नौजवानों में भारी नाराजगी है और हमें इस गुस्से को सकारात्मक संघर्ष में बदलना है। उन्होंने नौजवानों को बताया कि भारत ही नहीं वरन् दुनिया भर के नौजवान आज संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि उत्तर प्रदेश के नौजवान भी इन संघर्षों में अपना महत्वपूर्ण योगदान देंगे।
सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए भाकपा की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य अरविन्द राज स्वरूप ने कहा कि नौजवानों को भगत सिंह के सपने साकार करने हैं और देश में समाजवाद स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त करना है। पूंजीवादी शोषण से मुक्ति ही नौजवानों की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करेगी। उन्होंने आशा व्यक्त की कि मजबूत नौजवान सभा समाज में आमूल-चूल परिवर्तन का वाहक बनेगी।
प्रथम दिन के प्रतिनिधि सत्र में संयोजक नीरज यादव ने राजनीतिक एवं सांगठनिक रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट में 5 अगस्त 2010 से सांगठनिक कार्यों की चर्चा करते हुए कहा गया है कि अगस्त 2010 में गठित संयोजन समिति के निर्णयों के अनुसार 23 सितम्बर 2010 को कानपुर में कन्वेंशन किया गया तथा राष्ट्रीय अधिवेशन में प्रदेश से प्रतिनिधियों को भेजा गया। विभिन्न जिलों में बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, पब्लिक स्कूल, विद्यालयों तथा विश्विद्यालयों में बढ़ी फीसों के विरूद्ध धरने-प्रदर्शन किये गये। 12-13 अगस्त 2011 को लखनऊ में सम्पन्न स्टूडेन्ट्स फेडरेशन के प्लेटिनम जुबली समारोह में विभिन्न जिलों के नौजवानों ने इंतेजाम करने में भरपूर सहयोग किया। 28 सितम्बर 2011 को लखनऊ विधान सभा/झूले लाल पार्क में 500 नौजवानों-छात्रों ने जुलूस निकाल कर एक दिवसीय धरना दिया। तमाम जिलों में सदस्यता अभियान चलाया गया जिनमें से 16 जिलों में सम्मेलन सम्पन्न हो चुके हैं। बाकी जिलों में सम्मेलन करवाने का प्रयास जारी है। रिपोर्ट में राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं की भी विशद चर्चा की गयी।
सम्मेलन के दूसरे दिन विभिन्न जिलों से आये 26 प्रतिनिधियों ने संयोजक की रिपोर्ट पर बहस में भागीदारी की तथा रिपोर्ट को सर्वसम्मति से स्वीकार किया। रिपोर्ट अंगीकृत करते हुए सम्मेलन ने सदस्यता को 15 हजार से बढ़ाकर एक लाख करने, राज्य केन्द्र को संसाधनों से लैस करने, संगठन चलाने के लिए कोष एकत्रित करने तथा बैंक खाता खोलने का संकल्प किया गया।
इस सत्र में नौजवानों को सम्बोधित करते हुए नौजवान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष आफताब आलम ने नौजवानों को अनगिनत समस्याओं का उल्लेख करते हुए प्रदेश के नौजवानों का आह्वान किया कि वे पूरे प्रदेश में संगठित होकर देश की नियति को बदलें। आल इंडिया स्टूडेन्ट्स फेडरेशन की राज्य संयोजिका कु. निधि चौहान ने भी प्रतिनिधियों को सम्बोधित किया।
अपने सारगर्भित उद्बोधन में मेरठ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. आर.बी.एल. गोस्वामी ने नौजवानों का आह्वान किया कि वे भ्रष्टाचार और पूंजीवादी शोषक व्यवस्था को बदलें। उन्होंने कहा कि वह जामवंत की भूमिका में हनुमान को उनकी ताकत का आभास करवाने के लिए आये हैं। उन्होंने कहा कि आज की भ्रष्ट व्यवस्था में अभी भी साम्यवादी नेताओं के ऊपर एक भी उंगली नहीं उठी है। उन्होंने नौजवानों से कहा कि वह अन्याय और असमानता पैदा करने वाले कारणों के विरूद्ध जमकर संघर्ष करें। डा. गोस्वामी के उद्बोधन को खचाखच भरे सभागार में श्रोताओं ने बड़े मनोयोग से सुना।
सम्मेलन के अंतिम सत्र में 35 सदस्यीय राज्य कौंसिल का सर्वसम्मति से चुनाव किया गया। नई राज्य कौंसिल ने विनय पाठक को अध्यक्ष, जावेद खान सैफ, मुन्नी लाल दिनकर, आफताब हुसैन रिजवी तथा राज करण को उपाध्यक्ष, नीरज यादव को महामंत्री तथा शशि कान्त सिंह एवं डा. रघुनाथ को सहायक मंत्री निर्वाचित किया। दो सहायक मंत्रियों के पदों को रिक्त रखा गया।
भाकपा जिला सचिव जितेन्द्र शर्मा ने अपने भावुक सम्बोधन में प्रतिनिधियों और आगन्तुकों को धन्यवाद देते हुए सम्मेलन करवाने की जिम्मेदारी सौंपे जाने पर गाजियाबाद भाकपा की ओर से प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने सम्मेलन के सफल आयोजन में सहयोग के लिए पार्टी के साथियों तथा नौजवान सभा के कार्यकर्ताओं को धन्यवाद दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि नौजवानों पर देश बचाने और भविष्य में अच्छे नेता बनने का भारी दायित्व है।
अध्यक्ष मंडल की ओर से जावेद खान सैफ ने समस्त प्रतिनिधियों और आगन्तुकों के साथ-साथ सम्मेलन में आये प्रतिनिधियों के ठहरने एवं भोजन की अति उत्तम व्यवस्था करने के लिए गाजियाबाद के साथियों, विशेषकर भाकपा के नेतृत्व की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए भरोसा दिलाया कि नौजवान अपने दायित्वों से पीछे नहीं होंगे। नव निर्वाचित अध्यक्ष विनय पाठक ने सबको धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा की।
ज्ञातव्य हो कि उत्तर प्रदेश में नौजवान सभा निष्क्रियता की शिकार थी। लखनऊ में 5 अगस्त 2010 को आयोजित भाकपा की यूथ कैडर बैठक में भाकपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य पल्लब सेनगुप्ता तथा एआईवाईएफ के तत्कालीन महासचिव के. मुरूगन की उपस्थिति में नौजवान सभा को सक्रिय करने के लिए एक संयोजन समिति गठित की गई थी। यूथ कैडर बैठक के निर्णय के अनुसार तथा एआईवाईएफ के राष्ट्रीय केन्द्र की अपेक्षाओं के अनुरूप संयोजन समिति ने भाकपा की कानपुर जिला कौंसिल के सहयोग से कानपुर में 23 सितम्बर 2010 को एक सफल राज्य स्तरीय यूथ कन्वेंशन आयोजित किया। कन्वेंशन में संयोजन समिति विस्तारित की गयी तथा 28 सितम्बर से 1 अक्टूबर 2010 तक जालंघर में आयोजित एआईवाईएफ के राष्ट्रीय अधिवेशन के लिए प्रतिनिधियों का चुनाव हुआ। इस कन्वेंशन के बाद नौजवान सभा ने प्रदेश में पुनः गति पकड़ना शुरू कर दिया। इन्हीं प्रयासों की परिणति गाजियाबाद में नौजवान सभा के राज्य सम्मेलन में हुई।
सम्मेलन में दोनों दिन अखिल भारतीय नौजवान सभा के अध्यक्ष आफताब आलम, महामंत्री पी. सन्दोश, भाकपा के राज्य सचिव डा. गिरीश तथा नौजवान सभा के इंचार्ज अरविन्द राज स्वरूप निरन्तर मौजूद रहे।
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