भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प्रकाशन पार्टी जीवन पाक्षिक वार्षिक मूल्य : 70 रुपये; त्रैवार्षिक : 200 रुपये; आजीवन 1200 रुपये पार्टी के सभी सदस्यों, शुभचिंतको से अनुरोध है कि पार्टी जीवन का सदस्य अवश्य बने संपादक: डॉक्टर गिरीश; कार्यकारी संपादक: प्रदीप तिवारी

About The Author

Communist Party of India, U.P. State Council

Get The Latest News

Sign up to receive latest news

फ़ॉलोअर

शनिवार, 9 मई 2015

एक प्रासंगिक वर्षगांठ

9 मई फासीवाद पर जीत की 70वीं वर्षगांठ है। इसे मनाये जाने की आवश्यकता है ना केवल असंख्य लोगों द्वारा किये गए सर्वोच्च बलिदानों, विशेषकर पूर्व सोवियत संघ की लाल सेना के कारण बल्कि इससे भी अधिक अन्तर्राष्ट्रीय और घरेलू दोनों मोर्चों पर सामाजिक आर्थिक विकास के संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता के लिए भी। काफी विकसित अर्थव्यवस्थाएं 2008 में शुरू हुई आर्थिक मंदी के कारण आर्थिक संकट में फंस गयी हैं और अभी भी नव उदारवाद के संरक्षक इसे बड़ी मंदी का नाम दे रहे हैं और फासीवादी रूझानों के शासन तहत आ रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रीय वित्त पंूजी के आर्थिक हितों की सेवा करने वाली राजनीतिक शक्तियां इन देशों में सभी विभाजक मतांध नारों का सहारा ले रही हैं जिसमें आप्रवास के विरोध की पकड़ में रहने वाला नस्लवाद भी शामिल है। वैश्विक मंदी पंूजीवाद का नियमित संकट नही है बल्कि यह दुनिया में अपना राजनीतिक और आर्थिक वर्चस्व कायम करने के लिए वित्त पंूजी द्वारा चले जा रहे विशेष दांव के कारण है। वित्त पंूजी के इस संकट से निकलने में विफल रहने के कारण इसके बोझ को विकासशील देशों, विशेषकर उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं और उनके लोगों पर डाल रही है। युद्ध और तनाव थोपे जा रहे हैं, ना केवल प्राकृतिक संसाधनों पर उनका नियंत्रण बनाये रखने के लिए बल्कि युद्ध उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए, विशेषकर सेना और उद्योग गठजोड़ के लिए। दुनिया फासिवादी हमले के गंभीर खतरे का सामना कर रही है और वित्त पंूजी अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए और अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए और प्राकृतिक संसाधनों की लूट के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।
घरेलू स्तर पर भी कारपोरेट पंूजी, दक्षिणपंथी विचारधारा और फासीवादी रूझानों वाली सांप्रदायिकता के निकृष्तम रूप वाली नरेन्द्र मोदी सरकार के आने के कारण देश एक बेहद कठिन दौर से गुजर रहा है। सत्ता में आने का इसका इस महीने एक साल पूरा होने वाला है। इस छोटे से समय में ही यह सरकार आपना सामाजिक और आर्थिक चेहरा पूरी तरह बेनकाब करवा चुकी है। पिछली सरकार की तरह ही यह सरकार भी पूरी तरह से आर्थिक नव उदारवाद को लागू करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। जैसे कारपोरेट पंूजी ने उसे सत्ता में लाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाया तो मोदी सरकार भी बेशर्मी और नंगई से बचे हुए नव उदारवाद के एजेंडे को ‘‘सुधार प्रक्रिया‘‘ के नाम पर आगे बढ़ा रही है। इसमें प्रत्येक संभावित छूट की बारिश कारपोरेट घरानों और बहुराष्ट्रीय निगमों पर की गई है और मजदूर वर्ग द्वारा लड़ कर हासिल किये गए अधिकारों को कुचलने के लिए एक के बाद एक कानून बनाये जा रहे हैं। यह स्पष्ट है कि “श्रम सुधार“ इसके लिए सरकार का अर्थ केवल पंूजीपतियों को मजबूत करके श्रमिकों के अधिकारों को बेदर्दी से खत्म करने और हायर एण्ड फायर की नीति को थोपने से है। 
इसके साथ ही, इसने साफ कर दिया है कि उसमें जनता के जनवादी अधिकारों और जनवादी व्यवस्था के प्रति कोई सम्मान नही है।
संसदीय जनवाद को सोची समझी योजना के तहत अपमानित किया जा रहा है। सरकार अपना आर्थिक एजेंड़ा आगे बढ़ाने के लिए अध्यादेश राज की राह पकड़ रही है। इसके अलावा जनता को अधिकार प्रदान करने वाले कुछ कानून भी संशोधन की सूची में हैं। सूचना का अधिकार अधिनियम और व्हिसिल ब्लोअर की सुरक्षा का कानून विशेषकर इस हिट लिस्ट में हैं। यह भ्रष्टाचार की सुरक्षा करने के लिए भी है। 
जनता पर नए आर्थिक बोझ लादे जा रहे हैं। अनिवार्य वस्तुओं के दाम विशेषकर खाद्य वस्तुएं जिसमें अनाज और दालें शामिल हैं नई सरकार के तहत आसमान छू रहे हैं। सरकार को जनता की दुर्दशा की कम ही चिंता है। यह अच्छे दिन सब इनके अपने लोगों के हैं। इसे सुनियोजित तरीके से किया जा रहा जाति और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण दोगुना कर रहा है। मोदी-अमित शाह की जोड़ी द्वारा किया जा रहा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण केवल राजनीतिक रणनीति के आधार पर ही नही है बल्कि इसे जनता का ध्यान उनकी वास्तविक सामाजिक आर्थिक समस्याओं से हटाने के लिए भी किया जा रहा है। एक प्रभुत्ववादी मनोदशा के मुखिया वाली सरकार देश को एक फासीवादी सत्ता को सुपूर्द करने के लिए इन सभी आर्थिक, सामाजिक और सांप्रदायिक हालात को पका रही है। 
इन परिस्थितियों में एक अनेकों सर वाले राक्षस का कोई एक पहलू लेने का कोई उपयोग नही होगा। खतरे को संपूर्णता में देखा जाना चाहिए और उससे समग्रता में लड़ा जाना चाहिए। जब सांप्रदायिकता के खिलाफ और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए एक संभावित एकता की कोशिश कर रहे हैं, हमें जनता को लामबंद करके वैकल्पिक नीतियों के लिए लड़ने के लिए सड़कों पर लाना होगा। इन दोनों को साथ लेकर ही सभी पंूजीवादी राजनीतिक दलों और बुनियादी रूप से उनके नव उदारवाद नीतियों के प्रति प्रतिबद्धता का विकल्प बनाने के लिए जनता को जागरूक बनाने की आवश्यकता है। एक वाम जनवादी विकल्प बनाने का यही रास्ता है जोकि फासीवादी कब्जे के खतरे को विफल करेगा।
(”मुक्ति संघर्ष“ का सम्पादकीय)
»»  read more
Share |

लोकप्रिय पोस्ट

कुल पेज दृश्य