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मंगलवार, 27 जून 2017

योगी सरकार : असफलताओं के सौ दिन : भाकपा



लखनऊ- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के अब तक के कार्यकाल को 'असफलता के सौ दिन' शीर्षक से नवाजा है.
योगी सरकार द्वारा आज सौ दिन पूरा करने पर भाकपा की ओर से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये पार्टी के राज्य सचिव डा. गिरीश ने कहा कि इन सौ दिन में यह सरकार एक कदम भी आगे बढ़ने के बजाय सौ कदम पीछे की ओर खिसकी है.
यह सरकार मुख्य तौर पर चुनावों में लुभावने वायदों और क़ानून व्यवस्था दुरुस्त होने की लोगों की आकांक्षा के तहत सत्ता में आयी थी. इसका सबसे बढ़ा वायदा किसानों के कर्जे माफी का था जो कि न केवल आधा अधूरा है अपितु अभी तक अधर में लटका है. गन्ना किसानों के भुगतान के बारे में सरकार के दाबे झूठे हैं और चीनी मिलों पर किसानों की अभी भी तमाम रकम बाक़ी पड़ी है. किसानों के हालात  जस के तस बने हुए हैं और वे आत्महत्याएं कर रहे हैं.
क़ानून व्यवस्था तो जैसे नष्टप्राय ही होचुकी है. ह्त्या, लूट, डकेती और डकेती के साथ ह्त्या, राहजनी, बलात्कार और सामूहिक बलात्कार, बलात्कार के साथ ह्त्या आदि सभी बड़े पैमाने पर होरहे हैं. तमाम दाबों के बावजूद भ्रष्टाचार रुकने का नाम नहीं लेरहा. एक अबोध बच्ची तो रिश्वत देने को अपनी गुल्लक लेकर पुलिस अधिकारी के पास पहुंची क्योंकि पुलिस उसकी माँ के हत्यारों को इसलिए नहीं पकड़ रही थी कि उसे रिश्वत नहीं मिली थी. यह शर्मनाक घटनाक्रम योगी के सुशासन की सारी कलई खोल कर रख देता है.
सबका साथ सबका विकास का राग अलापने वाली योगी सरकार के शासन में दलितों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों और अन्य कमजोर लोगों पर जबरदस्त जुल्म होरहे हैं. सत्ता का संरक्षण प्राप्त दबंग तत्व और संघ की विभिन्न शाखाओं के लोग किसी न किसी बहाने उन पर शारीरिक हमले बोल रहे हैं और उनकी संपत्तियों को विनष्ट कर रहे हैं. हमलाबरों पर कार्यवाही करने के बजाय पीड़ितों और उनके हक में आवाज उठाने वालों को ही क़ानून के शिकंजे में घेरा जा रहा है. सहारनपुर, संभल की घटनायें सभी के सामने हैं. ये दबंग और शासक समूह द्वारा पोषित तत्व पुलिस- प्रशासन के अधिकारियों- कर्मचारियों पर खुले हमले बोल रहे हैं, जिसके चलते अधिकारी इनके दबाव में नाजायज काम करने को मजबूर हैं.
निजी एवं कार्पोरेट्स के हितों को साधने और कमजोर तबकों को रौंदने की गरज से सरकार ने मीटबंदी  और खनन बंदी की तथा तमाम तरह की भर्ती प्रक्रियाओं को रद्द कर दिया. इससे नौजवान और हर किस्म का मजदूर बेरोजगारी से कराह रहा है. 15 जून तक सडकों को गड्ढा मुक्त करने का इनका दावा भी हवा हवाई साबित हुआ है. हर स्तर पर शिक्षा में सुधार के बजाय उसे सांप्रदायिक बनाने की योजना पर काम चल रहा है.
सरकार केवल घोषणाओं और प्रपोगंडा के भरोसे चल रही है. इसकी असफलताओं से ध्यान हठाने को इसके प्रबन्धक खुल कर सांप्रदायिकता और जातीय उत्पीडन का सहारा लेरहे हैं. सरकार के काले कारनामों का विरोध करने वालों की आवाज बंद करने के प्रयास चल रहे हैं. आजादी के बाद यह पहली ऐसी सरकार है जो शुरू के सौ दिन में ही पूरी तरह अनुत्तीर्ण होचुकी है और बिहार के टापरों की तर्ज पर अपनी कामयाबी का ढिंढोरा पीट रही है.

डा. गिरीश 

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