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बुधवार, 26 जुलाई 2017

Three days agitation of CPI in U.P. is very successful

भाकपा के तीन दिवसीय आंदोलन में हजारों किसान कामगारों ने भागीदारी की


लखनऊ-  भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय परिषद के आह्वान पर किसानों की निरंतर जर्जर होरही आर्थिक स्थिति और उनके द्वारा की जारही आत्महत्यायें, अभूतपूर्व बेरोजगारी की मार झेल रहे मजदूरों और युवाओं की समस्याओं, केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जनता से किये गये वायदों से पूरी तरह किनाराकशी, उत्तर प्रदेश में जघन्य अपराधों से जूझ रही जनता की वेदना को उजागर करने और प्रदेश में दलितों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों और कमजोर तबकों के साथ लगातार होरही उत्पीडन की वारदातों पर अविलंब लगाम लगाये जाने आदि ज्वलंत सवालों पर भाकपा ने समूचे उत्तर प्रदेश  में 24 से 26 जुलाई तक तीन दिवसीय आंदोलन चलाया.
भाकपा की राज्य सचिव मंडल द्वारा की गयी आंदोलन की समीक्षा के अनुसार भारी वर्षा और धान की रोपाई के बावजूद प्रदेश के 64 जिलों में 25 हजार से भी अधिक कार्यकर्ता और जनता इन तीन दिनों में सड़कों पर उतरे. कई जिलों में तीन दिनों तक लगातार जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन कर धरने दिये गये तो कई जिलों में जिला मुख्यालय पर दिन रात सत्याग्रह जारी रहा. अधिकतर जिलों में पूरे तीन दिन कार्यक्रम चला तो कई छोटे जिलों ने दो या एक दिन कार्यक्रम चलाया. जिन जिलों ने तीन दिनों तक अभियान चलाया उनमें दो दिन तहसील केंद्रों पर तो एक दिन जिला केंद्र पर प्रदर्शन किये. सभी जगह महामहिम राष्ट्रपति और राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन स्थानीय अधिकारियों को सौंपे गये. कई स्थानों पर प्रदर्शनकारियों से प्रशासन की झडपें भी हुयीं.
भाकपा राज्य सचिव मंडल ने इस बात पर अफसोस जताया कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के सत्ता संभालने के बाद यह सबसे अधिक जन भागीदारी वाला आंदोलन है लेकिन टीवी चैनल्स ने इसकी पूरी तरह उपेक्षा की तो अखबारों ने केवल स्थानीय स्तर पर ही कुछ कबरेज किया. पूंजीवादी दलों के नेताओं को जुकाम होने को बड़ी खबर बताने वाले मीडिया ने देश और प्रदेश की बहुसंख्यक जनता की समस्याओं पर केंद्रित इस आंदोलन पर ब्लैक आउट रखा. भाकपा इसे जनता की समस्याओं पर पर्दा डाले रखने की मीडिया की कवायद के रूप में देख रही है.
राजधानी लखनऊ में आज भाकपा के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने पार्टी कार्यालय कैसरबाग से जुलूस निकाला और जी. पी. ओ. स्थित गांधी प्रतिमा के समक्ष सभा की. इससे पूर्व 24 जुलाई को मोहनलालगंज और 25 जुलाई को बख्शी का तालाब तहसील पर प्रदर्शन किये.
भाकपा मुख्यालय को प्राप्त सूचना के अनुसार जनपद जालौन के उरई स्थित मुख्यालय पर विशाल प्रदर्शन किया गया और तहसील केंद्रों पर धरने दिये गये. भाकपा का यह जुलूस उरई में गत कई वर्षों में किसी भी राजनैतिक दल द्वारा किये गये प्रदर्शनों से बढ़ा था. अनुमति के नाम पर प्रशासन ने बाधा उत्पन्न करने की कोशिश की. महिलाओं युवाओं और छात्रों की भागीदारी उल्लेखनीय थी. जनपद गोंडा के जिला मुख्यालय पर तीन दिन तक लगातार चले धरने में हजार से अधिक किसान- कामगारों की भागीदारी रही. गाज़ीपुर के जिला मुख्यालय पर का. सरयू पांडे पार्क में तीन दिन/ रात चले धरने को स्थानीय समाचारपत्रों ने सतत सत्याग्रह की संज्ञा दी. यहाँ भी प्रशासन ने अनुमति के नाम पर धरने को हठाने की असफल कोशिश की. जौनपुर में तीन दिन तक तहसीलों और जिला केंद्र पर हुये प्रदर्शनों में सैकड़ों की तादाद में लोगों ने हुंकार भरी. भदोही में भी तीनों दिन तहसील और जिला केंद्रों पर सैकड़ों की तादाद में किसान, कामगार, दस्तकार जुटे और सरकार की अकर्मण्यता पर हमला बोला. बलिया में जिला मुख्यालय के अतिरिक्त कई तहसीलों पर धरने और सभायें हुयीं. गोरखपुर के टाउनहाल ग्राउंड में धरना एवं सभा का आयोजन किया गया.
कानपुर महानगर में जिला मुख्यालय और तहसील केंद्र पर जुझारु प्रदर्शन हुआ तो अलीगढ़ के जिला मुख्यालय पर धरना दिया गया. मथुरा में भी जिला मुख्यालय और तहसील केंद्र पर प्रदर्शन किये गये. जिला मुख्यालय पर ज्ञापन लेने जब कोई सक्षम अधिकारी नहीं आया तो जिलाधिकारी कार्यालय पर घेरा डाल दिया गया. बाद में अपर जिलाधिकारी ने पहुंच कर ज्ञापन लिया. हाथरस में तीन तहसीलों पर धरने हुये तो हापुड़ के जिला मुख्यालय पर पहली बार भाकपा का धरना हुआ. मेरठ में जिला मुख्यालय और तहसील मवाना पर प्रदर्शन हुये. बुलंदशहर की स्याना और अनूपशहर तहसीलों पर धरने/ प्रदर्शन किये गये. औरैया के जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन किया गया. शामली जिला मुख्यालय पर बहुत अर्से बाद शानदार प्रदर्शन हुआ. बिजनौर में कई तहसील मुख्यालयों पर तो मुरादाबाद और अमरोहा में जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन किये गये. मुज़फ्फरनगर के जिला मुख्यालय पर भी प्रदर्शन किया गया. हरदोई के जिला मुख्यालय और तहसील केंद्र पर प्रदर्शन हुये.
इलाहाबाद जनपद मुख्यालय पर शानदार प्रदर्शन के अलाबा एक तहसील केंद्र पर धरना हुआ. श्रावस्ती के जिला मुख्यालय इकौना में पहली बार सैकड़ों की तादाद में किसानों मजदूरों ने सरकार की जमीन हड़पने की कारगुजारी के खिलाफ ललकारा. फतेहपुर जनपद के खागा में शानदार प्रदर्शन हुआ. बहराइच और बलरामपुर में भी प्रदर्शन किये गये. मैनपुरी के जिला मुख्यालय और तहसील घिरोर पर धरने हुये. देवरिया में भी जिला मुख्यालय के अतिरिक्त रामपुर कारखाना तहसील पर धरना हुआ. बाराबंकी में जेल भरो किया गया तो शहजहांपुर में जिला मुख्यालय पर धरना दिया गया. प्रशासन से भाकपा कार्यकर्ताओं की झड़्प भी हुयी. वाराणसी की पिंड्रा तहसील पर धरना दिया गया. झांसी में जिलाधिकारी कार्यालय पर शानदार प्रदर्शन हुआ जिसमें छात्र महिलायें व पल्लेदार अच्छी संख्या में शामिल थे. बदायूं में जिलाधिकारी कार्यालय के समक्ष जोरदार प्रदर्शन हुआ जिसमें आंगनबाढी कार्यकर्त्रियां भी शामिल रहीं. आज के कार्यक्रमों की रिपोर्ट समाचार लिखे जाने तक लगातार प्राप्त होरही हैं.
आंदोलनकारियों ने केंद्र और राज्य सरकार द्वारा किये गये वायदों की याद दिलाते हुये किसानों की आमद डेढ़ गुना बढाने और उनके समस्त कर्जे माफ करने की मांग की. खेती की बढ़्ती लागत को नीचे लाने और कृषि उपयोगी जिंसों को करमुक्त किये जाने सहित स्वामीनाथन आयोग की सभी सिफारिशें अविलंब लागू करने की मांग की. कृषि उत्पादों की लगातार गिर रही कीमतों को स्थिरता प्रदान करने को सरकार द्वारा एक लाख करोड़ रुपये का फंड स्थापित करने और 60 वर्ष के सभी किसानों खेत मजदूरों और दस्तकारों को रु. 10,000 प्रति माह पेंशन देने की मांग भी की. मोदी सरकार द्वारा लाये गये भूमि अधिग्रहण अध्यादेश 2014 को तत्काल वापस लिये जाने व पट्टाधारकों को  जमीन व मकानरहितों को मकान देने की मांग की.
ज्ञापनों में भाजपा के चुनावी वायदे की याद दिलाते हुये युवाओं को रोजगार दिलाने और नोटबंदी, मीटबंदी, खामी भरी खनननीति और भर्तियों के रद्द करने से उत्तर प्रदेश में युवाओं और मजदूरों को झेलनी पड़ रही  बेकारी की मार से बचाने की मांग की. सहारनपुर, संभल की घटनाओं की न्यायिक जांच कराने और वहां दलितों के खिलाफ की जारही एकतरफा कार्यवाही को रोके जाने की मांग की. दलितों अल्पसंख्यकों महिलाओं छात्रों युवाओं पर होरहे बेतहाशा अत्याचारों को फौरन रोके जाने और हत्या लूट व भ्रष्टाचार  पर कारगर रोक लगाने की मांग की. राज्य सरकार की पशुनीति के चलते ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आवारा पशुओं की आयी बाढ़ से किसानों की फसलों और इंसानों की जिंदगी पर आये संकट से निजात दिलाने की मांग भी की गयी है.
इसके अलाबा बढ़्ती महंगाई पर रोक लगाने तथा जनता की रोजमर्रा की जरुरियातों- दवाओं आदि को जीएसटी के दायरे से मुक्त कराने की मांग की.
भाकपा राज्य सचिव मंडल ने ऐसे समय में जबकि मोदी और योगी सरकार का चाबुक आम जनता पर निर्ममता से चल रहा है और प्रदेश की नामी गिरामी पार्टियां खामोश बैठी हैं, भाकपा कार्यकर्ता और समर्थकों को जनता के हक की आवाज शानदार तरीके से बुलंद करने के लिये उन्हें क्रांतिकारी बधाई दी है.
डा. गिरीश

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